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(२६) ने, तेथी ध्रोल निवासी तपगबना श्रावक तथा श्राविकाउने संबोधीने कहे जे के हे बाल तथा लार्छ ! था सज्काय सारी रीते सांजलजो. संवत् अढार पांसठमां रे, दीवाली खटकाली ॥ कहे खीमचंद शिवराजनो रे, करजोधर्म संजाली so
था सज्जाय संवत् १७६५ मां रची , अने प्रसंग पण दीवालीनो हतो. लखनार पोतानुं नाम आपतां कहे जे के हुँ शिवराजनो पुत्र खीमचंद कहुं बं के सौ कोइ पोतपोतानो धर्म बराबर संजालीने पालजो. ॥ अथ गेतिनास प्रारंनः॥राग रामग्री॥
॥ वीर जिनेश्वर पाय प्रणमीने, प्रणमीए शारद माय रे ॥ गेतिनिवारण जास जणेशू, जेम पापमल जाय रे ॥ बोति निबांधी वंश न वाधे, धर्म कर्म नवि कोय रे ॥ एम जाणीने नोति निवारो, जेम वांछित फल होय रे॥ ॥१॥जे हिंसादिक महामल होति, ते लोपे जीव ज्योति रे ॥ ते तो टले तपानल तापे, जो दयारस व्यापे रे ॥ बो० ॥॥ बोति मूर्ति स्त्रीधर्मिणी जाणो, तेहनो जय घणो आणो रे ॥ जेहनो दोष दीसे निज नयणे, वली कह्यो जिनवयणे रे ॥ ॥३॥ जेद बोति धातु
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