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________________ (३५) आलोअणा न पढइ, पुप्फवजं तवं करे नियमा॥नविअ सुत्तं अन्नंता,गुण तिहिं दिवसेहिं ॥ ५॥ अर्थः-पुष्पवती स्त्रीत्रण दिवस सुधी गुरु पासेथी आलोयण लेवाने अर्थे पोतार्नु पाप प्रकाशे नहीं, वली तपस्या न करे, नियम करे नहीं, सूत्र गणे नहीं. वली अन्य पण कां नाषण न करे ॥५॥ लोए लोनत्तरिए, एवंविद दंसणं समुद्दिठं॥ जा लणश्ननि दोसा, सिहंत विरादगो सोन॥६ अर्थः-लोक मांदे तथा लोकोत्तर एटले जिनशासन मांदे उपर प्रमाणे कहे बुं बे. जे कहे जे के एमां दोष नथी तेने सिद्धांतना विराधक जाणवा ॥६॥ इति समाप्त ॥ ॥ अथ स्त्रीने शील पालवाना यत्किंचित् बोलो लखीए जीए॥ १ पिता बांधव प्रमुख कोइ पण पुरुषनी कोटे वलगी मलवं नहीं. २ कोई परपुरुषने नवराववो नहीं. ३ कोई परपुरुषर्नु उवटणादिकथी अंगमर्दन करवू नहीं. ४ को परपुरुष साथे पत्रादिकथी खेलतुं नहीं. ५ कोई परपुरुषनो को पकमी वात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003853
Book TitlePushpvati Vichar tatha Sutak Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1918
Total Pages38
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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