Book Title: Pushpvati Vichar tatha Sutak Vichar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 17
________________ (१५) जे नव क्षेत्रो पवित्र कह्यां ने तेमां शतुवंती नारीथी अजाएतां रज पमी जाय तो ते पापिणी नारीने प्राण जतां ढुंगण, ढुंगण के सापिणीनो अवतार लेवो पमे . रतुवंती यात्राए चालतां रे, मत बेसजो गाडे ॥ संघतीर्थ फरस्यां थकां रे, पमशो पाताल खाडे ॥२०॥ ऋतुवंती नारीए यात्रार्थे जती वखते गामामां न बेसवं, अने जो एवी स्थितिमां कोई संघतीर्थने स्पा तो जाणजो के पातालना खामे पम, पमशे; अर्थात् बहु अशातावेदनीय कर्मों जोगववां पमशे. चोवीश प्होर एकांतमा रे, चोथे दिन नावं धोवु ॥ पुरुष बीजो नव पेखवो रे, मुख दर्पणमां न जोवू॥श्ए॥ चोवीश प्होर एटले त्रण दिवस रजस्वला बाइए एकांतमा रहे, चोथे दिवसे न्हाइ धोइ पवित्र अवं, परपुरुषने जोवो नहीं तेमज दर्पणमा मुख पण न जो. मूत्र बांटे पावन गायनुं रे, घरमा सहु गमे ॥ लीपेधूंपेधोवे दिन चोथेरे, जोजन रांधवा पामें ॥३०॥ चोथे दिवसे घरमां बधे गोमुत्र गंटवू, कारण के ते बहु पवित्र लेखाय ने, अने तेना वमे अशुदिनो नाश थाय बे. ते उपरांत घरमां लींपण करी बधे शुद्धि करवी जोइए. बाटलं कर्या पगी ते बाइ रसोमामां जश् रसोई करी शके. दर्शन पूजा दिन सातमे रे, जिननक्ति करवी ॥ व्रत पञ्चकाण वखाण सुणो रे, पुण्य पालखी जरवी ३१ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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