Book Title: Pushpvati Vichar tatha Sutak Vichar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 35
________________ (३३) सूरीश्वर सार ॥३०॥जणे सांजवे जे नर नार, पाले ते तो शुद्धाचार ॥ अनुक्रमे श्रमर विमाने सोदाय, रयणानूषण धरी मुक्ते जाय ॥३१॥ संवत् उंगणीश बीबोतरो सार, श्रावण कृष्ण पंचमी हितकार ॥ जखौ बंदर चोमासुं करी, चोपाइ सूतकनी कदी स्थिर करी ॥३२॥ श्रावक श्राविका पाले जेह, श्री जिनाणाए चाले तेह ॥ सहु शकि सिकि तणां सुख सार, वली मुक्ति तणां सुख लहे निर्धार ॥ ३३ ॥ इति सूतकनी सज्काय समाप्त ॥ ॥ अथ रजस्वला स्त्रीना अधिकारनी गाथा ॥ जा पुप्फपवई जाणी,-नण नहु संका करे नियचित्ते ॥ विश् अनंडगाइ, तथ्थय दोसा बहू हुंति ॥ १ ॥ अर्थः-जे पुष्पवती स्त्री जाणी करीने पोताना चित्तने विषे शंकाय नहीं अने हाम्लादिक गमने थाजडे तेने घणा मोटा दोष लागे ॥१॥ लची नासइ दूरं, रोगायंतद वदंति ऋ०३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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