Book Title: Pushpvati Vichar tatha Sutak Vichar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 3
________________ प्रस्तावना. -58:08 श्री जगतमां समस्त प्राणीमात्रने त्राणभूत, शरणभूत, या जव तथा परजवमां हितकारी, सुखकारी, कल्याणकारी ने मंगलकारी एवां त्रण तत्त्व बे. तेनां नाम कहे बे. एक तो देव श्री अरिहंतजी, बीजा गुरु सुसाधु तथा त्रीजो धर्म ते श्रीकेवलिनाषित. एत्र तत्र बे, तेने आराधवानुं मुख्य कारण अनाशातना बे, अने एने विराधवानुं मुख्य कारण आशातना बे. ते यशातना पण विशेषे करी अशुचिपणा थकी थाय बे. ते अशुचि वली बे प्रकारनी बे. एक तो द्रव्य की अशुचि ने बीजी जाव थकी अशुचि जावी. तेमां जाव अशुचि कार्यरूप बे, अने व्य अशुचि तेना कारणरूप बे. कारणयी कार्य थाय बे, ए वात सर्व शास्त्रमां प्रसिद्ध बे, तो वहीं नाव Jain Educationa International शुचि जे बे ते अशुद्ध बेश्या तथा अशुद्ध मनादिकना योग ने कषायादिकनी बे, केमके ए शुद्ध लेश्यादिकनां जे पुनलो बे ते केवां बे ? तो के श्वान, सर्प, श्रश्वादिक मरण पामेलां जे पशु तेमनां For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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