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पुण्यपुरुष १७
लोग भूखे भेड़िए के समान अबोध कुमार पर टूट पड़ेंगे । हमारी सारी सावधानी धरी की धरी रह सकती है | अतः मैं तो ऐसा सोचता हूँ कि ये राक्षस प्रहार करें उससे पूर्व ही कुमार को किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दीजिए।"
" शशांक ! सोच तो में भी कुछ इसी प्रकार से रहा । इन पागलों का कोई भरोसा नहीं ।"
" तब शीघ्रता कीजिए । एक पल का भी विलम्ब न कीजिए ।"
"एक पल का भी ? क्या तुम्हारे पास कुछ विशेष सूचना है ?"
"हीं, मन्त्रिवर ! मेरा अनुमान है कि ये दुष्ट आज ही रात्रि को ........।”
" आज रात्रि को ही ।" - कहते कहते मन्त्री मतिसार अपने आसन से उठ खड़ा हुआ। कुछ चिन्ताभरे किन्तु दृढ़ स्वरों में उसने अपने गुप्तचर से कहा
" शशांक ! सावधान ! जाओ, कुमार के शयनकक्ष पर कड़ी नजर रखो । जाओ ।"
सिर झुकाकर शशांक चला गया ।
मन्त्री ने दीवार पर टंगी हुई अपनी तलवार उतारी, उसे कमर से बाँधा और चीते की -सी फुर्ती से वह अपने कक्ष से बाहर निकल गया ।
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पाँच-सात वर्ष का एक छोटा-सा सुन्दर, तेजस्वी
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