Book Title: Punya Purush
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 268
________________ पुण्यपुरुष २५३ V "समझ रहा हूँ महाराज ! आपका आशय शायद यही है कि आप बिना युद्ध किये नहीं मानेंगे।" ___ "शायद नहीं, निश्चित । चतर्मुख उस लड़के श्रीपाल से कहना कि शेर की गुफा में प्रवेश करने का दुस्साहस न करे।" "महाराज ! भूलिए नहीं कि श्रीपाल महाराज ने अपने प्रबल पराक्रम से अनेकों राजाओं को अपने अधीन किया है........" ___ "वे राजा नहीं, मामूली लुटेरे होंगे ! सिंह नहीं, शृगाल होंगे। ऐसे शृगालों के बल पर कूदने वाले श्रीपाल को तुम मेरी बात अच्छी तरह समझा देना कि अजितसेन शृगाल नहीं, सिंह है। उसे वह चुपचाप सोने दे, छेड़कर जगाये नहीं । अन्यथा इस बार उसे जीता नहीं छोड़ गा नहीं । समझे ?" __चतुर्मुख ने समझ लिया कि अजितसेन मदान्ध है। यह किसी तरह मानेगा नहीं और अब इसका सर्वनाश निकट ही है। फिर भी उसने अंतिम चेतावनी देना उप युक्त समझा, कहा___ “यदि आपका यही अन्तिम उत्तर है महाराज अजितसेन ! तो मैं भी आपको अंतिम चेतावनी देने के लिए विवश हूँ। ध्यान देकर सुन लीजिए-श्रीपाल महाराज का खड्ग जब एक बार उठ जायगा तब आकाश में बिज Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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