Book Title: Punya Purush
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 274
________________ पुण्यपुरुष २५६ मनुष्य के जीवन में ऐसे महान् परिवर्तनों के पल कुछ इने-गिने ही आते हैं। जो भव्य जीव अपनी ज्ञानबुद्धि से उन पलों को पकड़ लेते हैं वे भव-सागर से तर जाते हैं। मुनि अजितसेन के जीवन में भी वह पल आया और वे पल मात्र में बदल गये । श्रीपाल महाराज ने यह अद्भुत और परम मंगलमय परिवर्तन देखा तो सपरिवार मुनि अजितसेन की तीन बार प्रदक्षिणा-वन्दना करके कहा____ “परमपूज्य ! आप सांसारिक जीवन में मेरे काकाजी होने के कारण से भी पूज्य थे, किन्तु अब तो मुनि-जीवन अंगीकार कर लेने पर आप मेरे ही नहीं, समस्त जीवजाति के लिए पूज्य हो गये हैं। आप धन्य हैं ! इस रूप में आपके शुभ दर्शन करके हम भी धन्य हो गए हैं। संसार के समस्त राग-द्वेषों का त्याग करके आप सर्वथा निष्पाप तथा निष्काम जीवन के पुण्य-पथ पर अग्रसर हो गये हैं अब आप मुक्ति-मर्ग के महायात्री हैं। हम बारम्बार आपका वन्दन करते हैं।" मुनि अजितसेन के चेहरे पर अब एक अवर्णनीय शान्ति विराजमान थी। एक अनासक्त आत्मा का तेज उनके मुखमण्डल से विकीर्ण हो रहा था। उनकी दृष्टि जिधर भी उठ जाती थी, उधर ही प्रफुल्लित कुसुमों का सुवास महक ऊठता था। - वे शान्तिपूर्वक अपने आसन से उठे, आशीर्वाद का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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