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कुछ वर्ष व्यतीत हो गये । देवकुमार के समान तेजस्वी कुमार श्रीपाल अब अपने यौवन में प्रवेश कर रहा था । उसकी देह तेजस्वी और सशक्त थी और मानवीय गुणों ने उसके व्यक्तित्व का आश्रय खोज लिया था। उसके गुणों और सामर्थ्य को देखकर कोढ़ियों ने स्वत: ही उसे अपना राजा बना लिया था और उसका नाम रखा था - उम्बर । किन्तु जैसी कि आशंका थी, कोढ़ियों के साथ निरन्तर रहने के कारण श्रीपाल को भी इस घातक रोग ने अपना शिकार बना लिया । यह देखकर रानी को बड़ी चिन्ता हुई। शशांक से विचार-विमर्श करके वह कुमार को उस दल के साथ ही छोड़कर उसके उपचार हेतु कोई अचूक औषध खोजने के लिए एक दिशा में चल पड़ी। उसे विश्वास था कि जैसे भी हो, जहाँ से भी हो, वह औषध अवश्य खोज लाएगी और कुमार को व्याधि-मुक्त कराएगी।
कोढ़ियों के राजा कुमार श्रीपाल को अब कोई भय नहीं था । कोई उसे पहिचान नहीं सकता था । कोई
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