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૬૪ पुण्यपुरुष
धवल सेठ के साथ भी यही घटित हुआ । अपने मोटे भारी-भरकम शरीर के साथ वह हाँफता हाँफता आधे रास्ते तक ही चढ़ पाया था कि उसके हाथ-पैरों ने जवाब दे दिया। हाथ कांपने लगे, पैर थरथराने लगे और रस्सी अब छूटी तब छूटी जैसी स्थिति हो गई । धवल सेठ भय और आसन्न मृत्यु की आशंका से पसीने से तरबतर हो गया और उसी हताशा के क्षण में उसके हाथ से रस्सी छूट गई.........
'धपाक' की एक मोटी ध्वनि के साथ धवल सेठ काफी ऊँचाई से जमीन पर आ गिरा। उसकी कमर में लटकी हुई तीक्ष्ण छुरिका गिरते समय उसी के मोटे पेट में ठेठ मूठ तक घुस गई । एक भयानक चीत्कार के साथ नाना प्रकार के कुकर्मों की पोट अपने सिर पर रखे धवल सेठ परलोक का यात्री बन गया। उसकी सारी सम्पत्ति, उसका सारा वैभव, उसकी सारी लालसाएँ और स्वप्न यहीं रह गये ।
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किसी भारी वस्तु के गिरने की आवाज तथा चीत्कार की ध्वनि सुनकर सजग पहरेदार दौड़ता हुआ उस स्थान पर आया । एक स्थान से जलती हुई मशाल वह उठा लाया और उसके प्रकाश में उसने मृत धवल सेठ के शव को वहाँ निश्चेष्ट पड़ा हुआ पाया। मशाल की रोशनी में उसने छत की दीवार के सहारे लटकती हुई रेशमी डोरी को भी देखा और क्षण मात्र में वह सारी घटना को समझ गया । आवाज
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