________________
पुण्यपुरुष
२११
"हाँ राजन् ! किसी विशेष प्रयोजन से ही आया हूँ ।" "आज्ञा कीजिए, आचार्यवर !"
“क्या आज्ञा करू ँ राजन् ! चिन्ता में पड़ गया हूँ...." " चिन्ता ? कैसी चिन्ता आचार्यवर! आप जैसे ज्ञानी पुरुष को कौनसी चिन्ता सता सकती है ? और फिर स्वयं मैं तथा मेरे राज्य की समस्त शक्ति, समस्त सम्पदा आपके श्रीचरणों में समर्पित है । आपके एक संकेत मात्र का विलम्ब है । सारी चिन्ताएँ कपूर की भाँति उड़ जायँगी।"
" राजन् ! जिस चिन्ता को लेकर आज मुझे आपके समीप आना पड़ा है, उसका समाधान इतना सरल नहीं है । भूल मुझ ही से हो गई कि मैंने राजकुमारी को राधावेध के विषय में आज बताया........!"
"राधावेध के विषय में आपने राजकुमारी को बताया तो उससे समस्या क्या उत्पन्न हो गई आचार्यवर ! क्या जया बेटी राधावेध का अभ्यास करना चाहती है ? यदि ऐसा है तो उसकी व्यवस्था आज ही कर दी जायगी । इस कारण आप इतने चिन्तित क्यों दिखाई दे रहे हैं ?"
"राजन् ! जैसा आप समझ रहे हैं वैसा नहीं है । राजकुमारी राधावेध का अभ्यास तो नहीं करना चाहती किन्तु........।"
" किन्तु ? कहिए कहिए, आचार्यवर! सब बात स्पष्ट कह डालिए । "
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org