Book Title: Pravachan Sara Tika athwa Part 02 Gneytattvadipika
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 4
________________ भूमिका। - - - इस श्री प्रवचनसार परमागमको श्री वर्धमान भगवानके समान प्रमाणीक दिगम्बर जैन पट्टावलीके अनुसार विक्रम संवत ४९ में प्रसिद्ध श्री कुंदकंदाचार्यजी महाराजने प्राकृत गाथाओंमें रचकर जो धार्मिक तथा अध्यात्मीक रस भर दिया है उसका स्तवन वाणीसे होना अशक्य है। इसकी एक संस्कृतवृत्ति दशम शताब्दीमें प्रसिद्ध श्री अमृतचन्द्र आचार्यने की है। उसीके पीछे प्रायः उसी समयमें दूसरी संस्कृतवृत्ति परम अनुभवी श्री जयसेनाचार्यजीने रची है। प्रथम वृत्तिका कुछेक अंश लेकर हिन्दी भाषाटीका श्रीयुत आगरा निवासी विद्वान पंडित हेमराननीने की है। यद्यपि संस्कृत वृत्तिके शब्दोंक अनुसार भाषाटीका लिखनेका प्रयास जहांतक विदित है अभीतक किसी जैन विद्वानने नहीं किया है। दूसरी संस्कृतवृत्तिकी भाषाटीका अभीतक किसी विद्वान् द्वारा देखनेमें नहीं आई । श्री जयसेनाचार्यछत वृत्ति सरल, विस्तारयुक्त तथा विशेष अध्यात्मिक है इस लिये हमने अपनी शक्ति न होनेपर भी केवल धर्मभावनाके हेतु हिन्दी भाषा लिखनेका उद्यम किया है।

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