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(७३) ५३ प्रश्न:-ए पाठे कर्म जीव शुं करवाथी बांधे छ ! उत्तरः-ए आठे कर्म बांधवानां घणां कारण छे, पण मुख्यपणे सत्तावान हेतु छे. ते आ प्रमाणे:-मिथ्यात्व पांच ते अभिग्रह मिथ्यात्व. तेथी कुगुरु, कुदेव, कुधर्मनो खोटो हठ पकडेलो छे ते भूके नहि. म्हारा बाप दादा करता आव्या ते करवू, बीजी रीते जे पुगलिक वस्तुने म्हारापणे अति आग्रहथी मानी रह्यो छे, ते पण मिथ्यात्व छे. अनभिग्रह मिथ्यात्व ते सुदेव अने कुदेव ए बन्नेने सरखापणे माने; पण गुणीने गुणीपणे मानवा, अगुणीने छोडवा ते करी शके नहि. त्रीजु अभिनिवेशीक मिथ्यात्व ते-साचा देव गुरु धर्मने ओलखे, पण ममत्वने वश आदरे नहि ने तेनी हीलना करे. संशयीक मिथ्यात्व ते सर्वज्ञना वचनमा संशय करवो. अनाभोग मिथ्यात्व ते धर्म कर्मनी कंइ पण खबर नहि. जड जेवो माणस होय, धर्मनी बिलकुल रुचि होय नहि. ए पांच मिथ्यात्व अने बार अ. व्रत, ते पांचे इंद्रि ने छटुं मन तेना विषयमां लुब्धपणे वर्षे, ते छ तथा छकाय जेमां पृथ्विकाय ते माटी, मीठं, धातु विगेरे, अप्काय ते पाणी, तेउकाय ते अग्नि, वाउकाय ते पवन, वनस्पतिकाय ते लीलोत्री, ने त्रसकाय ते बेरेंद्रि, तेरोंद्र, चौरेंद्रि, पंचेंद्रि एमां पांच इंद्रिवाला मनुष्य अने तिर्यंच ते पंखी, ढोर ते-गाय, भेंस, घोडा, बकरा, शियाल, हरण विगेरे तथा समुद्रनां न्हानां म्होटां माछलां, मगरमच्छ प्रमुख ए आदि घणी जातना सर्प प्रमुख छे ते, तथा देवता ने नारकी ए चार जातनां पंचेंद्रि जीवो छे. ए छकायना जीवनी हिंसा करवी. ते छ, एम बार अवतथी जीव कर्म बांधे छे.
पच्चीश कषाय ते पचासमा प्रश्नना उत्तरमा मोहनीकर्मना स्वरूपमा चारित्रमोहनीनी पच्चीस प्रकृति कही छे, ते जाणवी. ते सेव्याथी जेवी जेवी कषायनी प्रकृति थाय छे, तेवू तेवु कर्म बांधे छे. कर्म बांधवानुं बीज जए छे. तीव्र मंद कषायने ज संबंधे कर्म बंधाय छे. योग ते मन वचन कायाना योग. तेमां मनयोग चार प्रकारे. सत्य