Book Title: Prashnottar Ratna Chintamani
Author(s): Anupchand
Publisher: Jain Prasarak Gyanmandal

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Page 258
________________ 4 ( २४६ ) गत्मां नथी. जे जे बने ते जाणवुं एज महारो धर्म छे, शरीरादिके जे उपाधि थाय छे, तेंथी म्हारां कर्म भोगवाय छे. तेथी पण म्हारो आत्मा निर्मल थाय छे, एटले ए पण आनंद थवानुं कारण छे. हुं शा कारण दिलगीर थउं ? के विकल्प करूं? भगवान् श्रीमत् महावीरस्वामी महाराजने संगम देवताए अत्यंत उपसर्ग कर्य; तो पण समभाव छोड्यो नहि, तेम हुं पण समभावमांज रहूं. कंइ पण चीज म्हारी नथी तो हुं शी बाबतनो विकल्प करूं ? आ रीते निर्विकल्पपणे सर्वथा रहेशे तो केवलज्ञान पामी सिद्धिने वरशे अने तेथी उतरती विशुद्धिवाला पण गुणस्थाननी हदमा रहेशे तो सातमे भत्रे सिद्धिने वरशे. माटे संथारो करवो ने समभावे रहेवानो उद्यम करवो. सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणं ॥ प्रधानं सर्व धर्माणां; जैन जयति शासनं ॥ १ ॥ वली भत्तपच्चख्खाण पयन्नामां मंथारो करनारने गाथा ४१ मीमां शीतल समाधी सारु नागकेसर, तज, तमालपत्र, एलची, साकर ए वरतु दूधमां नांखी दूध उकाली दूध टाटुं करीने अनशन करनारने पावु एथी अन शन करनारने शीतलता रहे ए मुजब कह्युं छे. श्रावक धनवान होय तो साते क्षेत्रे धन वापरीने देव गुरुने वादीने अनशन करे. अनशन नो लाभ ए पयन्नामां बहु कह्यो छे. आ मुजब अनशन विधि सामान्य छे. प्रश्नः-१६२ आत्मारामजी महाराज विजयानंदसूरि महाराजने प्रश्न लख्यां हतां तेनो जवाब शुं छे ? उत्तरः- आत्मारामजी महाराजजी साहेबनो कागल नीचे मुजब आव्यो हतो. शहेर अंबाला संवत् १९५१ ना भादरवा वद ११ खेउ. पूज्यपाद श्री श्री श्री १०८ श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरजी आत्मारामजी महाराजजी आदि साधु १० ना तरफथी धर्मलाभ वांचजो. भरुच बंदरे श्रावक, पुण्य प्रभावक, देव गुरु भक्तिकारक, शेठ श्रनोपचंद मलुकचंद विगेरे. अत्रे सुखशाता छे धर्मध्यान करवामां उद्यम

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