Book Title: Prashnottar Ratna Chintamani
Author(s): Anupchand
Publisher: Jain Prasarak Gyanmandal

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Page 268
________________ करेली वापरे तेथी शुं व्रत भंग थाय छे ? ते विषे जाणवू जे आगार राख्या छे पण ते विषे शास्त्रमा कहेलुं छे जे दृढ प्रतिज्ञावान आगार सेवता नथी, पण जेनुं मन ढीलुं छे एटले रोगादिक सहन थता नयी परिणाम बगडी जाय छे एवं लागे तोव्रत उपर परिणाम राखवाने प्रायश्चित च लेवानी भावना सहित वापर. ते आगारवाली वस्तु सेव्यानुं पण प्रायश्चित्त कर्तुं छे. तो ए अपवाद मार्ग छे, पण जे आगार नथी सेवतो ने शुद्ध स्वरूप उपर नजर राखे छे तेनी अपेक्षाए तो ए उतरतो २. वली केटलाएक जीव पैसाना लोभथी एटले निर्दोष दवा- खरच वघारे लागे छे तेना कृपणपणाथी दूषित दवाओ वापरे छे ए तो बहुज दूषण छे. एवा माणसो पैसानी कसस्थी अमक्ष दवाश्री वापरे छे ने पार्छ शुभ खाते द्रव्य वापरे छे, ते करतां शुभ खाते कमी वापरी भक्ष दवामां पैसा वापरे तो ए वधारे उत्तम नीति छे. वास्ते व्रत रहे एम करवू एज कल्याणकारी छे. तेम जेना परिणाम बगडता होय तेमने आगार से.. ववानी मना करवी ते पण योग्य नथी. प्रश्नः-१८५ साधुजी गाममा प्रवेश करे तो तेमने वाजते गाजते सा. मैयुं करी तेडी लाववानुं शास्त्रमा कां छ ? उत्तर:-श्राविधिमां पाने २६८ मे एवो अधिकार के के, श्रीधर्मघोषसूरीना नगरप्रवेशना ओच्छवमां बहोतेर हजार टका श्रावके ख.. रच कर्या छे. वली व्यवहार सूत्रनी भाष्यमा पाने १८२ मे छे तेनुलां प्रमाण आप्यु छ जे प्रतिमाधर मुनि प्रतिमा पूरी थाय त्यारे नगर बहार रही गुरुने खबर आपे के, हुं श्राव्यो ढुं. पछी गुरु, राजा प्रमुख जे श्रावक होय तेने जणावे. पछी श्रावक बडा आडंबरथी प्रवेश करावे. तेथी शासननी प्रभावना थाय. षणा जीव धर्मना रागी थाय. एकि गैरे घणो दर्शाव श्रादविधिमां छे. भाटे वडा आडंबरथी गुरु महाराजने • नगरप्रवेश कराववो. 'प्रश्न:-१८६ चोमासामा खांड विगेरेनो त्याग करवान कया शालमा ? .

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