Book Title: Prashnottar Ratna Chintamani
Author(s): Anupchand
Publisher: Jain Prasarak Gyanmandal

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Page 216
________________ ( २०४ ) - प्रश्नः - १४३ तमे जे जे भावना करवानी कहो छो, ते आत्मघरनी है के परघरनी १ उत्तर:- जेटलो व्यवहार व छे, पुद्गले करी वर्त्तना करवी छे अने ते सारु भावना भाववी छे, ते सर्व व्यवहार पर धरनो छे. एटले पुद्ग. ल मिश्रित छे. कारण जे आत्माना स्वभाविक गुण तो जाणत्रा देखवा ना छे, पण विचार करवो ते आत्मानो धर्म नथी, ज्यां सुधी संपूर्ण केवज्ञान प्रगट नथी थयुं, त्यां- सुधी पुद्गले करी सहित विचार छे. कारण जे मति श्रुतज्ञान छे ते इंद्रियजनित ज्ञान छे, इंद्रियोनुं बल छे. अवबोध थाय ते पांच इंद्रि ने छहुँ मन एना संयोगथी ज्ञान थाय छे. ए ज्ञान आत्मा अने परने संजोगे थाय छे, ते पण जीवनो आत्मा अवराइ जवाथी मति श्रुतज्ञाननो जेटलो बोध छे तेटलो थतो नथी. ज्ञाननी भक्ति, ज्ञानवाननी भक्ति, ज्ञान प्रगट करवानी अतिशय उत्कंठा, तेमज भगवाना वांचवाना काममां अतिशय अभ्यास, जे ठेकाणे ज्ञान मलवानुं होय वा दूर होय, वा नजीक होय ने तेनो वखत साचववो पडतो होय ते सहन कर पडतुं होय, ने जे हुकम फरमावे ते करवो पडतो होय, ते सर्वे हुकम तथा सर्व दुःख सहन करी, ज्ञान मेलववाने श्रालस छोडी, रात्री दिवस उद्यम करे छे, त्यारे ज्ञानावर्णी कर्म थोडा थोडा जेम जेम क्षय थतां जाय, तेम तेम मति श्रुतज्ञाननो बोध वधतो जाय छे. त्यारे जीव म्हारुं स्वरूप अने पारकुं एटले जडनुं स्वरूप ओलखे छे त्यारे शास्त्रमां जडनी संगत छोडवाना जे जे उपाय बताव्या छे ते जाणे हे तेथी तेनी विचारणा करे छे. ए विचारणा एवी छे के जेथी आत्मा पोताना स्वरूपनी सन्मुख थतो जाय छे ने परभावधी चित्त खशेडतो जा - य छे. जेटलं परभावथी चित्त खश्युं तेटलो आत्मा शुद्ध थतो जायछे, जैम के आपणा कुटुंबना माणस शिवायना माणसने घरमा मुनम करीने राखीए छीए तो तेने द्रव्य श्रापवुं पडे छे एटलुं द्रव्य व्यवहारथी तो ओकुंथयुं लागे छे पण बीजी तरफ विचार करीए तो आपणुं जे धन के •

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