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"श्री मेदपाटे नृाभकर्ण-स्तदंघ्रिराजीवपरागसेवी । समण्डनाख्यो भुवि सूत्रधारस्तेनोद तो भूपतिवल्लभोऽयम् ।"
(१४-४३) रूपमण्डन ग्रन्य में सूत्रधार मण्डन ने अपने विषय में लिखा है
"श्रीमहशे मेदपाटाभिधाने क्षेत्राख्योऽभूत् सूत्रधारोवरिष्ठ: पूत्रो ज्येष्ठो मण्डनस्तस्य तेन प्रोक्त शास्त्रं मण्डन रूपपूर्वम्।"
(६-४०) इससे ज्ञात होता है कि मए डन के पिता का नाम सूत्रधार क्षेत्र था। इन्हें ही प्रत्य लेखों में क्षेत्राक भी कहा गया है। क्षेत्राक का एक दूसरा पुत्र मूत्रधार नाथ भी था जिसने 'वास्तु मंजरी' नामक ग्रंय की रचना की । सूत्रधार मण्डन का ज्येष्ठ पुत्र सूत्रधार गोविन्द और छोटा पुत्र सूत्रधार ईश्वर था । सूत्रधार गोविन्द ने तीन ग्रन्थों की रचना की - उद्धार धोरण, कलानिधि और द्वारदीपिका । कलानिधि ग्रन्थ में उसने अपने विषय में और अपने संरक्षक राणा श्री राजमल्ल ( राय मल्ल ) के विषय में लिखा है
"सूत्रधारः सदाचारः कलाधारः कलानिधिः । दण्डाधारः सुरागारः श्रिये गोविन्दयादिशत ।। राज्ञा श्री राजमल्ले (न) प्रीतस्यामि (ति) मनोहरे। प्रणम्यमाने प्रासादे गोविन्दः संव्यधादिदम् ॥"
(विक्र. सं १५५४) राणा कुंभा की पुत्री रमा बाई का एक लेख (विक्रम सं. १५५४) जावर से प्राप्त हा है जिसमें क्षेत्राक के पौत्र और सूत्रधार मए उन के पुत्र ईश्वर ने 'कमठारणा बनाने का उल्लेख है
"श्रीमेदपाटे वरे देशे कुम्भकर्णनृपगृहे क्षेत्राकसूत्रधारस्प पुत्रो मण्डन प्रात्मवान् सूत्रधारमण्डन सुत ईशरए कमठाणु विरचितं "
ईश्वर ने जावर में विष्णु के मन्दिर का निर्माण किया था। इसी ईश्वर का पुत्र सूत्रधार छीतर था जिसका उल्लेख विक्रम सं. १५५६ (१४६६ ई.) के चितौड़ से प्राप्त एक लेख में पाया है । यह राणा रायमल्ल के समय में उनका राजकीय स्थपति था । इससे विदित होता है कि राणा कुभा के बाद भी सूत्रधार मएडन के वंशज राजकीय शिल्पियों के रूप में कार्य करते रहे। उन्होंने ही उदयपुर के प्रसिद्ध जगदीश मंदिर और उदयपुर से चालीस मील दुर कांकरौली में बने हा राज समुद्र सागर का निर्माण किया ।
राणा कुभा के राज्य काल में राणकपूर में सूत्रधार देपाक ने विक्रम सं. १४६६ (१४३६ ई.) में सुप्रसिद्ध जैन मन्दिर का निर्माण किया। कुंभा की पुत्री रमा बाई ने भलगढ़ में दामोदर मंदिर के निर्माण के लिये सूत्रधार रामा को नियुक्त किया। सूत्रधार मण्डन को राणा कुंभा का पूरा विश्वास प्राप्त था। उन्होंने कुंभलगढ़ के प्रसिद्ध दुर्ग को वास्तु-कल्पना और निर्माण का कार्य सूत्रधार मण्डन को सं. १५१५ (१४५८ ई.) में सौंपा । यह प्रसिद्ध दुर्गाज भी अधिकांश में सुरक्षित है और मण्डन की प्रतिभा का साक्षी है। उदयपुर से १४ मील दूर एकलिंग जी नामक भगवान शिव का सुप्रसिद्ध मन्दिर है ! उसी के समीप एक अन्य विष्णु मन्दिर भी है। श्री रत्नचन्द अग्रवाल का अनुमान है कि उसका निर्माण भी सूत्रधार मन्डन ने ही किया
१-गृह ग्रोर देवालय प्रादि इमारती काम को अभी भी राजस्थानीय शिल्पी कमठाणा बोलते है।