Book Title: Prakrit Vyakarana
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
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२६४ त्या, इत्थ, इत्था, इंसु अने अंसु; ए चार प्रत्ययो वपराएला छे. तेमां ' त्था ' अने । इत्था, ' घणे ठेकाणे एकवचनमां वपराया छे अने इंसु ' तथा ' अंसु' घणे ठेकाणे बहुवचनमां वपराया छे. ए जातना केटलाएक आर्षरूपो जोवाथी एवं अनुमान बांधी शकाय छे के, त्रीजा पुरुषना एकवचनमा 'त्या' अने : इत्था' वपराया छे अने बहुवचनमां इंसु' अने · अंसु' वपराया छे. जेमके:
हो + स्था-होत्था ( अभवत् , अभूत् , बभूव)
भुञ्ज + इत्था-भुल्लित्था (भुक्तवान् )
१ आ ' होत्था ' ' पहारित्य' 'विहरित्या' वगेरे एकवचनी रूपोनी अने 'करिंसु ' ' पुच्छिसु ' 'आहंसु' वगेरे बहुवचनी रूपोनी साधना पालिव्याकरण द्वारा शोधी शकाय छे. पालिभाषामां त्रीजा पुरुषना एकवचनमां आत्मनेपदी 'इत्थ' अने बहुवचनमा परस्मैपदी ' इंसु,'' इसुं,' अने 'अंसुः' प्रत्ययो वपराएलाछे. उपर्युक्त आर्षरूपोमां वपराएलो ' इत्था' पालिना ए ' इत्थ 'नुं रूपांतर जणाय छे, 'पहा. रित्य' रूपमां तो पालिनो जेवोने तेवो ' इत्य' प्रत्यय ज वपराएलो छे अने पालिना 'इंसु' अने 'असु' ए बे प्रत्ययो एमने एम ए आर्षरूपोमा वपराया छे. जेम संस्कृतमा यस्तनी, अद्यतनी अने क्रियातिपत्तिनां रूपाख्यानोमां धातुनी पूर्वे 'अ' उमेराय छे तेम पालिमा छे पण प्राकृतमां नथी.
पालिरूपो भू एकव० ३ अभवित्थ ('इत्य' प्रत्ययवाळु) बहुव० ३ अगमिसु, अगमंसु ( 'इंसु' अने 'अंसु' प्रत्ययवाळू)
-जूओ पालिप्र० पृ. २१७ नि० १७६-१७५ तथा पृ. २२० 'गम' ना रूपो अमे टिप्पण.

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