Book Title: Prakrit Vidya 2000 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 2
________________ (आवरण पृष्ठ के बारे में भारतीय संस्कृति में शिक्षा का सम्मान दिनांक 22 अप्रैल '2000 को परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन जीवन के पचहत्तर वर्ष पूर्ण हुये। इस सुअवसर पर भक्तजनों ने अत्यंत बहुमानपूर्वक उनका जन्मदिवस 'पीयूष-पर्व' के रूप में सादगीपूर्वक मनाया। स्वनामधन्य साहू श्री अशोक जैन की स्मृति में बड़ौत (उ०प्र०) की संस्था साहू श्री अशोक जैन स्मृति पुरस्कार समिति' द्वारा प्रवर्तित पुरस्कार इस वर्ष यश:काय समाजसेविका शिक्षानेत्री ब्र० कमलाबाई जी (राज०) को आचार्य कुन्दकुन्द सभामण्डप, परेड ग्राउण्ड (दिल्ली) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक माननीय श्री कु० सी० सुदर्शन जी के कर-कमलों से सादर समर्पित किया गया। यह एक उल्लेखनीय बात रही की माननीय श्री सुदर्शन जी ने ब्र० कमलाबाई जी को अपने वक्तव्य में तीन बार 'मातुश्री' का संबोधन किया। तथा उनके विनयपूर्वक चरण-स्पर्श भी किये। यह भारतीय सांस्कृतिक गरिमा का मूर्तिमान रूप था। साथ ही उन्होंने वर्तमान शिक्षा पद्धति में भारतीय संस्कृति एवं परम्परा के विरुद्ध दी जा रही शिक्षा के प्रति खेद व्यक्त किया तथा इसमें गुणात्मक सुधार के लिये संकल्प की घोषणा की। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब तक परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज जैसे महान् ज्ञानी संतों के मार्गदर्शन के अनुसार शिक्षापद्धति उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण से युक्त नहीं होगी, तब तक इस देश का शैक्षिक स्तर उन्नत नहीं हो सकेगा। पूज्य आचार्यश्री के प्रति बारंबार बहुमान व्यक्त करते हुये उन्होंने कहा कि आप जैसे पावन संतों के मार्गदर्शन की सम्पूर्ण देश को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व को अत्यंत आवश्यकता है। ब्र० कमलाबाई जी के प्रति बहुमान व्यक्त करते हुये कहा गया कि आपको मात्र 'एक लाख रुपये' की राशि समर्पित की गई है, किंतु आपके द्वारा लाखों महिलाओं का जीवन रत्नों की तरह तराश कर मंगलमय बनाया गया है। अत: वस्तुत: यह आपके महान् कार्यों के प्रति एक अत्यंत छोटी सी विनयांजलि मात्र है। पूज्य आचार्यश्री ने समागत श्रद्धालुजनों को अपने आशीर्वचन में आध्यात्मिक एवं नैतिक रूप से उन्नत जीवन बनाने का मांगलिक संदेश प्रदान किया।

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