Book Title: Prachin Tibbat Author(s): Ramkrushna Sinha Publisher: Indian Press Ltd View full book textPage 4
________________ प्राचीन तिब्बत हाँ तो, यह तो मैं बता ही चुकी हूँ कि किस प्रकार से सिक्कम के उत्तराधिकारी कुँवर से मेरी भेट हुई और कैसे मैंने उनकी राजधानी तक जाने का वचन भी दे दिया था। पर गङ्गटोक के लिए चल देने के पूर्व यहाँ जो एक खास बात देखने में आई उसका उल्लेख भी करती चलूँ। __ तीर्थ यात्रा करने के लिए निकले हुए लोग झुण्ड के झुण्ड दलाई लामा के हाथ से आशीर्वाद पाने के लिए इकट्ट हुए थे। रोम में भी लोग पोप से इस प्रकार का आशीर्वाद पाते हैं किन्तु यहाँ के और वहाँ के ढंग में अन्तर था। पोप बस एक बार हाथ उठाकर एक साथ सबको आशीर्वाद दे देता है, किन्तु दलाई लामा को प्रत्येक व्यक्ति को अपने हाथ से अलग-अलग स्पर्श करना होता है। और इस कार्य में उन्हें प्रत्येक के ओहदे का विचार रखना पड़ता, है। जिसका दर्जा सबसे बड़ा होता है, उसके मस्तक पर वे अपने दोनों हाथ रखते हैं। औरों के सिर पर वे केवल एक हाथ से या दो उंगलियों से--कभी-कभी एक से भी छू भर देते हैं। जो सबसे निम्न श्रेणी के होते हैं उन्हें दलाई लामा के हाथ से अपने सर पर कातक के एक हलके स्पर्श से ही सन्तोष करना होता है। लोगों की संख्या सैकड़ों में थी। इस भीड़ में बहुत से बङ्गाली और नेपाली हिन्दू भी आ मिले थे। बड़ी देर तक यह जन-समूह दलाई लामा के सामने से निकलता रहा। __ एकाएक मेरी दृष्टि एक ओर कुछ अलग भूमि पर बैठे एक ऐसे आदमी पर पड़ी, जो हिन्दू साधुओं की भाँति जटा रखाये हुए था पर भारतीय नहीं लगता था। उसकी बग़ल में एक झोली थी। रह रहकर वह भीड़ को देखता और अजीब ढङ्ग से मुस्करा देता था। ___ * काते हुए सूत का बना रङ्ग-बिरङ्गा फीता, जिसे धार्मिक लामा प्रायः एक दूसरे को मेट में देते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.comPage Navigation
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