Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 2
________________ प्राचीन तिब्बत मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने कुछ कहा हो। दूसरे ही दिन उनकी राजधानी के लिए चल देने का शायद मैंने वचन दिया था। सहसा बाजे-गाजे के साथ यह छोटा सा जुलूस आँखों से ओझल हो गया और मैं खोई हुई सी खड़ी रह गई। धीरे-धीरे दूर जाकर बाजों की ध्वनि विलीन हो गई और मैं जाग सी पड़ी। अरे, यह सब तो सत्य था। मैं जीती-जागती हिमालय की तराई में कलिम्पोंग तक पहुँच गई हूँ। और फिर अगर यह केवल सपना होता तो मुझे सौंपा हुआ यह लोचवा मेरे पास कहाँ से खड़ा रहता ? ___कुछ राजनैतिक उलट-फेर से विवश होकर दलाई लामा इधर इन दिनों ब्रिटिश-राज्य में आश्रय ग्रहण कर रहे थे। यह मेर परम सौभाग्य था कि ऐसा दैव-संयोग मेरे हाथ लगा। मैंने इर सुअवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाने का निश्चय कर लिया। कलिम्पोंग में दलाई लामा भूटान के राज-मन्त्री के अतिथि थे। इमारत वैसे भी काफी आलीशान थी। उसे और रौनक देने के लिए बड़े लम्बे-लम्बे बाँस की दो-दो कतारें मेहराब के आकार की लगा दी गई थीं। हर एक बाँस से झण्डा फहरा रहा था और हर एक झण्डे पर 'ओं मणि पद्म हु' लिखा हुआ था। निर्वासित नृपति अपने सैकड़ों आदमियों के साथ यहाँ भी ठाठ ही से रहते थे, किन्तु राजप्रासाद का वह वैभव यहाँ कहाँ से आता ? सड़क पर जाता हुआ कोई राही बाँसों के इस झुरमुट को देखने के लिए कुछ काल ठिठक भले जाय, किन्तु इससे उसे पोतला के वास्तविक ऐश्वर्य और चहल-पहल का रत्ती भर भी अनुमान होना असम्भव था। ल्हासा की पवित्र पुरी में बहुत कम लोगों की पहुँच भिक्षसम्राट् तक हो सकी है। अपने इस निर्वासन-काल में भी वे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com

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