Book Title: Prachin Tibbat Author(s): Ramkrushna Sinha Publisher: Indian Press Ltd View full book textPage 3
________________ तिब्बत के लामा ३ किसी से मिलते-जुलते नहीं थे। इसके पूर्व मेरे सिवा तिब्बत देश के बाहर की और किसी खो-जाति को उनके दरबार तक पहुँचने की नौबत नहीं आई थी। और मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि आज तक इस नियम का अपवाद केवल मेरे बारे में हुआ है। बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों की जानकारी रखनेवाली कोई पाश्चात्य स्त्री दलाई लामा की समझ में एक अनोखी बात थी । अगर उनसे बातें करते-करते मेरे नीचे की धरती फट जाती और मैं उसमें समाजाती, तो उन्हें इतना अचम्भा न होता । उन्हें विश्वास ही नहीं होता था । आखिर जब वे राह पर आये तो बड़ी नम्रता से मेरे गुरु का नाम पूछा। उन्हें विश्वास था कि मैं किसी एशियाई गुरु का नाम लूँगी। उन्होंने सोचा होगा कि महात्मा बुद्ध के बारे मेरी जानकारी एशिया में आकर हुई होगी। मेरे पैदा होने -: कहीं पहले प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ 'ग्यछेर् रोल्पा' का तिब्बती से फ ेव भाषा में अनुवाद हो चुका था । पर उन्हें इस बात का विश्वास दिलाना मेरे लिए आसान नहीं था । " खैर", अन्त में उन्होंने कहा "अगर तुम्हारी यह बात मान भी लो जाय कि कुछ बाहरी लोग हमारी भाषा जान गये हैं और हमारी धर्म-पुस्तकें उन्होंने देखी हैं तो यह कौन जानता है कि उनका असली मतलब उनकी समझ में आ ही गया है !" मैंने देखा, मौक़ा अच्छा है; चूकना नहीं चाहिए। तुरन्त कहा"जी, यही तो बात है। मेरा भी अनुमान है कि तिब्बती धर्म की कुछ विशेष बातों का हमने बिल्कुल गलत अर्थ समझा है । इन्हीं को ठीकठीक समझने के सिलसिले में तो मैंने आपको भी कष्ट दिया है।" मेरे इस उत्तर से दलाई लामा खुश हो गये। मैंने उनसे जोजो सवाल किये सभी का उत्तर उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक दिया और मेरे लिए और भी सुभीते कर दिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.comPage Navigation
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