Book Title: Prachin Tibbat Author(s): Ramkrushna Sinha Publisher: Indian Press Ltd View full book textPage 6
________________ ६ प्राचीन तिब्बत "उससे कहो, मैं उसके पास यह जानने को आई हूँ कि वह दलाई लामा के हाथ से आशीर्वाद पाने के लिए इकट्ठी हुई भीड़ में क्या देखकर हँसा था।" "नाबदान में बज-बज करते हुए तुच्छ कीड़े! अपने ऊपर और अपने कृत्यों पर इन्हें कितना बड़ा अभिमान होता है। छिः!" । "और आप ?” मैंने पूछा "क्या आप तक कोई गन्दगी नहीं छू गई है ?" वह जोरों से हंसा। "जो बाहर निकलना चाहता है उसे तो और भीतर डुबकी लगानी पड़ती है। मैं उस गन्दे नाले में सुअर की तरह लोटता हूँ। और उसे स्वच्छ पानी के झरने में परिणत कर देता हूँ। घूरे में से सोना पैदा करना-यह हम जैसे खिलाड़ियों का खेल है।" "तो क्या........." "हम गुरु पद्मसम्भव के एक मामूली चेले हैं, पर फिर भी"... ___ मैंने देखा कि मामूली चेले' का दिमाग किसी ऊँचे आसमान पर था; क्योंकि 'फिर भी' कहते समय उसकी आँखों में एक ऐसी चमक थी जिससे बहुत सी बातों का पता चलता था। इधर मेरा दुभाषिया रह-रहकर इधर-उधर देखता था। उसका मन नहीं लग रहा था। दलाई लामा के लिए उसके हृदय में असीम श्रद्धा थी और वह अपने कानों से यह निन्दा नहीं सुन सकता था। फिर 'घूरे में से सोना पैदा करनेवाले उस खिलाड़ो' से उसे एक प्रकार का जो भय सा लग रहा था वह अलग। ____मैंने वहाँ से चल देने का विचार किया और नालजोर्पा को दे देने के लिए कुछ रुपये दावसन्दूप के हाथ में रख दिये। किन्तु इस भेट से वह बिगड़ खड़ा हुआ। उसने उसे अस्वीकार भी कर दिया। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.comPage Navigation
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