Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 7
________________ तिब्बत के लामा दावसन्दूप ने और प्राग्रह करना उचित समझा। लामा के पास एक चौकी पर रुपये रख देने के लिए वह आगे बढ़ा। एकाएक वह ठिठका, कुछ पीछे हटा और दीवाल के सहारे उसने इस जोर से पीठ का सहारा लिया जैसे किसी ने उसे बलपूर्वक पीछे को ढकेल दिया हो। कराहकर उसने अपने पेट को दोनों हाथों से दबोच लिया। नालजोपो उठा और छींकता-छाँकता कमरे से बाहर हो गया। ___न जाने किसने मुझे बड़े जोर का धक्का दिया। नालजोपा रुष्ट हो गया है। अब क्या होगा ?" मैंने कहा-"नालजोर्पा की बात छोड़ो। आओ चलें। मालूम होता है, तुम्हारे फेफड़े में कोई शिकायत है। अच्छा होगा यदि किसी डाक्टर को दिखलाओ।" दावसन्दूप कुछ बोला नहीं। बड़ी देर तक वह डर के मारे सहमा रहा। हम अपने ठिकाने भी पहुँच गये, पर उसे मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ। दूसरे दिन हमने गङ्गटोक के लिए प्रस्थान किया। मेरे गङ्गटोक तक पहुँचते-पहुँचते बड़े जोरों की आँधी आई और पत्थर पड़ने लगे। तिब्बतियों का विश्वास है कि इस प्रकार के सारे दैवी प्रकोप दैत्यों और जादूगरों के कृत्य होते हैं। पत्थरों की वर्षा तो उनका एक विशेष अख होता है, जिसका उपयोग वे बेचारे यात्रियों के मार्ग में रोड़े अटकाने के लिए या कमजोरदिल चेलों को अपने पास से दूर ही रखने के लिए करते हैं। कुछ दिन बीत जाने पर मन्त्र-तन्त्र में विश्वास रखनेवाले दावसन्दूप ने मुझे बतलाया भी कि वह पहले ही किसी म्पा (ज्योतिषो) से मिला था। उस गुनी ने बतलाया था कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, kurnatumaragyanbhandar.com

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