Book Title: Prachin Tibbat
Author(s): Ramkrushna Sinha
Publisher: Indian Press Ltd

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Page 10
________________ प्राचीन तिब्बत बीचोबीच एक बड़ा लम्बा सा तिनका सीधा खड़ा देखा। यह क्या बला थी, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया। ____ बाद को दावसन्दूप से ज्ञात हुआ कि ये लोग मृतक शरीर से उसकी आत्मा को स्वच्छन्द कर रहे थे। मन्त्र के बल से खोपड़ी का सिरा (ब्रह्माण्ड ) खुल जाता है और एक छोटे से छेद के मार्ग से प्रारणात्मा शरीर को त्यागकर बाहर आ जाती है। मन्त्र का उच्चारण ठोक-ठीक सही रूप में होना चाहिए। यह काम केवल वही लामा कर सकता है, जिसने अपने गुरु के चरणों के समीप कुछ समय तक रहकर शिक्षा-दीक्षा ली हो। 'हिक' के बाद 'फट' का उच्चारण करना होता है और तब जीवात्मा के शरीर से बाहर निकलने के लिए ब्रह्माण्ड में एक मार्ग खुल जाता है। मन्त्र का ठीक-ठीक उच्चारण न करने में स्वयं अपनी जान का खतरा रहता है। जब लम्बा तिनका सिर पर अपनी इच्छा के अनुसार ठीक सीधा खड़ा रह जाय तब समझना चाहिए कि मन्त्र के पढ़ने की विधि भली भाँति आ गई। ___ मृत्यु और परलोक से सम्बन्ध रखनेवाले सभी सवालों में दावसन्दूप को बड़ी दिलचस्पी थी। आगे चलकर पाँच या छः वर्षे बाद उसने इस विषय की एक तिब्बती पुस्तक का सुन्दर अनुवाद भी किया। प्रेत-विद्या में उसका विश्वास था और वह स्वयं जब-तब मन्त्र जगाता था। लेकिन पेट का चारा चलाने के लिए विवश होकर उसे नौकरी का सहारा लेना पड़ा था। भारत सरकार ने उसे भूटान को दक्षिणी सीमा पर दुभाषिये का काम करने के लिए नियुक्त कर दिया था। दावसन्दूप से जब मेरी भेंट हुई तब वह सरकारी नौकरी छोड़. कर गङ्गटोक के तिब्बती स्कूल का हेडमास्टर हो गया था। पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, unatumaragyanbhandar.com

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