Book Title: Prachin Stavan Jyoti Author(s): Divya Darshan Prakashan Publisher: Divya Darshan Prakashan View full book textPage 7
________________ OM अतएव हमें प्रत्येक स्तवन के भाव क्रमबद्ध लिखकर लेना चाहिये। इसका वारंवार स्वाध्याय करने से, पुनराति करने से मन अनेक पापों से छूटकर प्रभु के भाव में ही रुका रहता और तभी मनःपवित्र एवं प्रसन्न होता है । "मनः प्रसन्नतामेति पूज्यामाने जिनेश्वरे ।" प्रस्तुत पुस्तक में प्रभु भक्ति के भावपूर्ण स्तवनों का सुन्दर संग्रह किया गया है । फलतः इस प्रकार संघ को प्रभुभक्ति के लिए एक सुन्दर भाव भक्ति साधना का संग्रह करने का प्रयास किया गया है । इस भौतिकवादी युग में सम्पूर्ण विश्व भोगोन्मुख हो रहा है । लोग अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार और विविध दुराचारों को ही आनन्द समझ बैठें हैं । आज के युग में कालकूट से भरा सिनेना संगीत मानव को पथभ्रष्ट करते हैं । ऐसी विषम परिस्थिति में प्रस्तुत 'संग्रह' भक्ति - रस की पीयूषधारा प्रवाहित करता है जिसके श्रवण, मनन एवं गान स्वरूप पान कर मानव मुक्ति के पथ पर विकासोन्मुख हो सके यही एक शुभेच्छा है । ६, केनिंग स्ट्रीट ज्ञानपंचमी २०२७ पन्यास भानुविजय गणिवरPage Navigation
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