Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 04 Jain Dharm ka Prachar Author(s): Gyansundar Maharaj Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala View full book textPage 8
________________ जैन धर्म का प्रचार व्यौपारी इस ओर आते और यहाँ से बहुत सा माल ले जाते थे इस प्रकार परस्पर विचार विनिमय का साधन बना हुआ था। (६) अङ्ग बङ्ग और मगध प्रान्त । प्रातः स्मरणीय भगवान महावीर स्वामी एवं उनके शिष्य प्रशिष्यों का विहार प्रायः इसी प्रान्त में हुआथा । महाराजा श्रेणिक, कौणिक, उदाई, नौ नन्दनप, मौर्य सम्राट् , चन्द्रगुप्त तथा सम्प्रति नरेश के राज्यकाल में तो जैनधन ही राष्ट्रधर्म था। उस समय जैनधर्म का प्रवेश प्रत्येक घर में हो चुका था। अहिंसा की पताका सतत भारत भूमि पर फहरा रही थी । यहाँ तक कि विक्रम की चौदहवीं शताब्दी पर्यन्त भी जैनधर्मावलम्बियों का इस प्रान्त में खासा जमघट था । अब से लगभग दो और तीन शताब्दियाँ पहले 'सारक' नामक जाति के लोग इस प्रान्त में जैनधर्मोपासक थे। पर अन्त में वह दशा न रही । जैन धर्म के प्रचारकों एवं उपदेशकों का नितान्त अभाव था । इसी कारण धीरे-धीरे लोग पुनीत जैनधर्म को त्याग कर अन्य मतावलम्बी होते रहे । बात यहाँ तक हुई कि वहाँ जैनधर्मोपासक न रहे। आज जो इस प्रान्त में थोड़े बहुत जैनी दिखाई देते हैं वे यहाँ के निवासी नहीं हैं। इनमें से प्रायः सब मारवाड़ प्रान्त से व्यौपारार्थ गये हुए हैं। ये जैनी अब बंग आदि प्रान्तों में व्यौपार करते हैं । वहाँ के व्यौपार में भी जैनियों का अब विशेष हाथ है। पूर्व जमाने में तो यह प्रान्त जैनधर्म का केन्द्र रहा हुआ था। बीस तीर्थङ्करों ने इसी प्रान्त के सम्मेत सिक्खर पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया था राजग्रह के पाँच पहाड़ों पर भी अनेक मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया राजगृह, चम्पापुरी, पावापुरी, विशाला और पाटलीपुर तो जैनियों के रम्य क्षेत्र ही थे इतना ही नहीं पर भगवान् महावीर का जन्मPage Navigation
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