Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 04 Jain Dharm ka Prachar
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpamala
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जैन धर्म का प्रचार
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सिलसिला अब तक भी जारी है। यद्यपि उस तरह का राज्य कष्ट इस समय नहीं है तथापि जीविका निर्वाह का प्रश्न यहाँ के निवासियों के लिए दिन प्रतिदिन जटिल हो रहा है अतएव इस समस्या को हल करने के उद्देश से यहाँ के कई लोग दूसरे प्रान्तों में जाकर बस रहे हैं तथा मारवाड़ियों का अधिकांश व्यौपारी वर्ग मारवाड़ के बाहर जा कुछ उपार्जन कर वापस अपने प्रान्त में आ जाता है। इतना होने पर भी जैनियों की आबादी तो केवल इस एक प्रान्त में ही है । सब जैनी इस समय १२ लाख के लगभग हैं; उनमें से ३ लाख जैनी इस समय मारवाड़ में विद्यमान हैं । इस भूमि में अनेक नररत्नों ने जन्म ले जैन धर्म की खूब सेवा की है। जैन धर्म की उन्नति के लिए तन, मन और धन को अर्पण करने वाले इस प्रान्त में अनेक नररत्न उत्पन्न हो चुके हैं। उपर्युक्त आचार्यों के समय से आज तक जैन धर्म इस प्रान्त में अविच्छिन्न रूप से चला आ रहा है।
यह तो आप पढ़ चुके हैं कि जैन धर्म एक राष्ट्रीय धर्म था इसमें किसी जाति वर्ण का हक्क या ठेका नहीं था। वीर की प्रथम शताब्दी में आचार्य स्वयंप्रभसूरि तथा रत्नप्रभसूरि ने लाखों अजैनों को जैन धर्मावलम्बी बनाया । वह समय ही ऐसा था कि उन वाममार्गियों से उनको अलग रखना था जिससे उस समूह का नाम महाजन वंश रक्खा । उनकी उदारता ने उसमें बहुत वृद्धि की पर पीछे से ज्यों ज्यों वह जातियों का रूप पकड़ता गया त्यों त्यों उसमें संकीर्णता प्रवेश होती गई अतएव यहाँ जरा जैन जातियों का हाल भी पाठकों की जानकारी के लिए लिख देना उपयोगी होगा । जैन जातियों के जन्म समय से लेकर ३०३ वर्ष तक तो दिनप्रति दिन जैनियों का हर प्रकार से महोदय ही होता रहा।जो