Book Title: Patrika Index of Mahabharata
Author(s): Parshuram Lakshman Vaidya
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
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________________ किं चैतन्मन्यसे कृच्छु ]. श्लोकपादसूची [किं तु यानि विदुर्लोके किं चैतन्मन्यसे कृच्छं 5.76.5%. किं तहि सुमध्यमे 3. 281. 70'. किं चैतस्याः परायणम् 12. 22.56. किं तद्येन स्म धर्षिताः 1. 159. 1. 'किं चोत्तरं वाकरिष्यस्त्वमेव 8. 729*. 8. किं तद्विद्वन्महात्मना 12. App. 15. 42 post. किं छिद्रं कोऽनुषङ्गो मे 12. 90. 14". किं तन्न विदितं मम 9. 60. 310; 364*. 2 post. किं जपन्मुच्यते जन्तुः 13. 135. 39. किं तपः कश्च निश्चयः 3. 246. 34. किं जय कर्मसाधनम् 13. App. 18. 4 post. किं तपः संप्रकीर्तितम् 12. App. 20. 117 post. किं जप्यं किं जपेन्नित्यं 12. App. 17B. 13 pr. किं तपो ब्रह्मचर्य वा 13. 82. 13*. किं जयं जपतो नित्यं 13. App. 18. 2 pr. किं तया स करिष्यति 14. 13.6%. किं जप्ये च महीपते 3. 81. 65. किं तयोर्विप्रियं कृत्वा 7. 50. 57". किं जातममृतात्परम् 1. 261*. 1 post. किं तयोः कारणं भवेत् 13. 147.20. किं जातं न विद्म वै 7. 334*.2 post. किं तयोः पूर्वकतरं 13. App. 15. 2250 pr. किं जानन्मा विगर्हसे 7. 390*. 2 post. किं तवापकृतं तत्र 12.308. 167%. किं जितं किं जितमिति 2. 58. 41. किं तवास्मासु कर्तव्यं 12. 146.90. किं जीवितफलं मम 5. 88.634. किं तवेदं चिकीर्षितम् 1. 192. 260. किं ज्ञातेन तवार्जुन 6. 32. 42. किं तस्मिन्मुक्तलक्षणम् 12. 308. 1280, 1294, 1304,1324 किं ज्ञानं किं श्रुतं वा ते 12. 168. 12. किं तस्य च फलं लभेत् 13. App. 14B. 69 post. किं ज्ञानं प्रोच्यते राजन् 3. App. 19. 13 pr.; किं तस्य तपसा कार्य 12. 256. 14deg3; 261. 28deg. App. 32. 5 pr. किं तस्य तपसा राज्ञः 12. 69. 71. किं ज्ञास्यस्यगुणो गुणान् 8. 27. 54. किं तस्य पुष्करजलैरमिषेचनेन 1. 2. 2424. 4.2*. 4. किं तच्छंसितुमर्हसि 13. App. 3A. 388 post. 12.2*. 4. 14.2*. 4. 18. 5.544. किं तच्छौचमुदाहृतम् 3. App. 19. 6 post. किं तस्य बहुभिर्मत्रैः 12. App. 17B. 166 pr. किं तच्छौचं भवेद्येन 3. App. 21A. 167 pr. किं तस्य भरतश्रेष्ठ 13. App. 8. 4 pr. किं तज्ज्ञानमयो विद्या 12. 229. 20. किं तस्य भूयः सलिलेन कृत्यम् 14. App. 4. 3166. किं ततः परमं भवेत् 2. 15. 144. किं तस्यां मम सेनायां 7. 100. 1". किं ततः परमं सुखम् 3. 226. 17. किं तिष्ठत यथा मूढाः 7. 164. 50%. किं तत्पैशुन्यमुच्यते 3. App. 19. 34 post. ; App. 32. किं तीर्थ परमं नृणाम् 13. App. TA. 231 post. 26 post. किं तु कार्यगरीयस्त्वात् 1. 44. 6deg. किं तत्र क्रूर दुष्कृतम् 7. 169. 251. किं तु कार्यवशादेतत् 4. 56*. 1 pr. किं तत्र तव दृश्यताम् 5.358*.2 post. किं तु कौतूहलं तात 3. App. 20. 17 pr. किं तत्स्वभावमन्यद्वा 13. App. 15. 2458 pr. किं तु तत्र शुभं कर्म 13. App. 15. 2241 pr. किं तदक्षरमित्युक्तं 12. 291. 1". किं तु तस्य सुदुर्बुद्धेः 15. 36. 260. किं तदत्यद्भुतं वृत्तं 13. App. 3A. 394 pr. किं तु दुर्योधनादीनां 4. 1145*.2 pr. किं तदा कुरवः कृत्यं 7.89. 18. किं तु देवस्य महतः 13. 17.9". किं तदा न निहंस्येनं 7. 169. 27. किं तु नात्यद्भुतं तेषां 7. 45. 2%; App. 18. 9 pr. किं तदा प्रत्यपद्यत 6. 15.58d. किं तु नाद्यानुशोचामि 3. 176. 29". किं तदा स्यात्परायणम् 12.79. 13. किं तु नाल्पेन कार्येण 3. 194*. 3 pr. किं तदुत्पादितं पूर्व 12. 335. 4. किं तु बुद्ध्या समो नास्ति 12. 151. 16. किं तदेवार्थसामान्य 12.308. 49. किं तु ब्रह्माथ रुद्रो वा 12. 862*. 1 pr. किं तद्गुह्यं न चाख्यातं 3. 287. 1". किं तु भारत भक्तिर्मा 1. App. 3. 31 pr. किं तद्दानमिहोच्यते 3. App. 19. 26 post. किं तु भूमेर्गवां चार्थे 13. 83. 25. किं तदैवं परं प्रोक्तं 3. App. 32. 26 pr. किं तु मद्वचनाहि 15. 18.8". किं तद्धैर्यमुदाहृतम् 3. App. 19. 25 post. किं तु मोक्षविधिस्तेषां 13. App. 15. 2033 post. किं तब्रह्म किमध्यात्म 6.30. 1". किं तु यानि विदुलोंके 12. 200.6%. पादसूची-93 - 737. -

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