Book Title: Patrika Index of Mahabharata
Author(s): Parshuram Lakshman Vaidya
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
View full book text
________________ किं पुनस्तात पाण्डवाः] लोकपादसूची [किं भूयः कथयामि ते किं पुनस्तात पाण्डवाः 5.56. 38". किं पुनस्तात पाण्डवैः 8. 5. 82. किं पुनस्त्वमनाथानां 1. App. 110. 22 pr. किं पुनस्त्वयि दुर्धर्षे 5. 162. 13. किं पुनस्त्वं न मन्येथाः 1. 647*. 2 pr. किं पुनस्त्वं महीपते 13. 23. 4. किं पुनस्त्वं वनस्पते 12. 150. 284. किं पुनस्त्वं वृकोदर 3. 232. 10. किं पुनस्त्वं सुदुर्बुद्धे 7. 1144*. 12 pr. किं पुनस्त्वामनर्थकम् 12. 18. 18. किं पुनस्त्वां धनंजय 7. 218*. 2 post. किं पुनः कर्ण वायसः 8. 28. 42. किं पुनः काञ्चनं प्रभुः 14. 133*. 2 post. किं पुनः कौरवं बलम् 8. 51.8. किं पुनः कौरवान्रणे 4. 858*. 2 post. किं पुनः पाण्डवास्तात 4. 28. 4. किं पुनः पाण्डवाः सर्वे 7. 63. 15. किं पुनः पाण्डवेयानां 8. 23. 18. किं पुनः पाण्डुपुत्राणां 4. App. 41. 12 pr. किं पुनः पापकारिणम् 12. App. 3. 13 post. किं पुनः पुरुषव्याघ्राः 12. 14. 29". किं पुनः पृथिवीशूरैः 6. 86. 83". किं पुनः प्रज्वलन्भुवि 13. App. 1A. 366 post. किं पुनः प्राकृतैः पार्थः 4. 27. 250. किं पुनः शरसंघातैः 12.50. 16. किं पुनः श्यामकर्णानां 5. 113. 13. किं पुनः स कृतास्त्रोऽद्य 3.228. 14. किं पुनः समरे स्थितः 3.23.23d. किं पुनः सर्व एव ते 5.63. 16. किं पुनः सहदेवं च 3. 141. 9. किं पुनः सहिता वीराः 9. 2. 24. किं पुनः स्वर्णभाण्डानि 14.25*.2 pr. किंपुना च विशल्या च 2. 103*. 1 pr. किं पूतमधिकं ततः 14. App. 4. 2367 post. किं प्रदास्यामि ते मुने 12. App. 24. 59 post. किंप्रमाणा हयास्तस्य 7. 150.3. किं प्रयच्छन्ति दातृणाम् 13. App. 7A. 51A 1 post., 150 post. किं प्रयच्छामि भगवन् 1. 123. 34. किं प्रयच्छामि राजेन्द्र 13. 4. 11". किं प्रलापः करिष्यति 5. 103. 384. 12. 80. 20f. 14. 11. 4. किं प्रवक्ष्यामि ते भृशम् 12. 590*. 10 post. किं प्रशंससि केशवम् 2. App. 23. 5 post. , 7 post., 9 post. , 16 post. किं प्रापद्यत कौरवः 9. 1. 24. किं प्राप्त किं नु कर्तव्य 1.77.7. किं प्राप्स्यामि तपोधन 12. 33. 4. किं प्रार्थयसि विप्रर्षे 12. 192. 11". किं फलं जपतामुक्तं 12. 189. 3deg. किं फलं जीवितेन मे 4. 17.603; 357*. 6 post. ; 393*. 4 post. 5. 105. 5. किं फलं ज्ञानयोगस्य 12. 194. 1". किं फलं तत्र मानद 13. 144.4. किं फलं तस्य कास्न्ये न 3. 80. 10. किं फलं तस्य विप्रर्षे 3. 80. 28. किं फलं प्रतिपद्यते 13. 109. 4. किं फलं ब्रह्मवित्तम 13. 101. 144. किं फलं ब्राह्मणेष्वस्ति 13. 144. 39. किं फलं भरतर्षभ 12. 10. 24. किंफलाः किंपरायणाः 14. App. 4. 5 post. किं बन्धुभिर्मत्रपरिग्रहैश्च 12. App. 18. 105. किं बन्धुमिर्मित्रपरिग्रहैश्च 12. 211. 46. 13. App. 15. 4085. किं बलं परमं तुभ्यं 14.92. 100. किं बालिशां मतिं राजन् 3. 8.7. किं बाल्ये वापि केशव 14. App. 4. 252 post. किं बिभेषि वृथा सुत 1. 1505*. 4 post. किं ब्रह्मा न विजानीते 12, 326. 102. किं ब्राह्मणबलेन त्वं 12. 75. 11. किं ब्राह्मणस्येह गजेन कृत्यम् 13. 105. 11". किं ब्राह्मणस्येह धनेन कृत्यम् 13. 105. 124. किं ब्राह्मणानां देवत्वं 3. 297. 300. 12. 288. 43". किं ब्राह्मणाः स्विच्छ्रेयांसः 5. 35.6deg3; 205*. 1 pr. किं भक्ष्यं किमभक्ष्यं च 12.37.26. किं भवत्यै प्रयच्छामि 14.55. 250. किं भवानवतिष्ठते 3. 186. 1264. किं भवान्न विगर्हति 10. b. 24. किं भविष्यति ब्रह्मर्षेः 3. App. 25. 108A 2 pr. किं भीतोऽसिक यास्यसि 6.55. 18. किं भीम नैनं त्वमिहाशृणोषि 8. 826*. 1. किं भीमस्य न जानासि 7. 705*. 3 pr. किं भीमः समरश्लाघी 6. 41. 28deg. किं भीष्मः प्रतिवक्ष्यति 6. 41. 28. किं भूतमधिकं तथा 14. App. 4. 417 post. किं भूयः कथयामि ते 9. 239*. 1 post. 13. 112. 233 -743

Page Navigation
1 ... 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808