Book Title: Patrika Index of Mahabharata
Author(s): Parshuram Lakshman Vaidya
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
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________________ किं त्वां भीभीम विन्दति ] लोकपादसूची [किनामधेयगोत्रो का किं त्वां भीीम विन्दति 5.73. 15. किं विदं महदाश्चर्य 13. 54. 17". किं त्वियं विधिना पूर्व 1. 220*. 2 pr. किं त्वेतदिति मारिष 7. 172. 40". किं त्वेवाहं विह्वलः संप्रदृश्य 5. 182.80. किं दत्तं कूपमासाद्य 3. 81. 83deg. किं दत्तं हुतमिष्टं वा 7. 41. 10%. किं ददानीति तं विप्र 3. 294. 2. किं ददानीति बहुशः 5. 104, 24deg. किं दर्दुरः कूपशयो यथेमां 5. 158. 19%; App. 11. 17. किं दर्पवशमापन्नः 13. App. 1A. 169 pr. किं दानं किं फलं चैव 13. 83.76. किं दानं नयति यूज़ 14. App. 4. 258 pr. किंदाने च नरः स्नात्वा 3. 81. 65". किं दुर्मर्ष तितिक्षूणां 2. 225*. 3 pr. किं दुष्कृतं भीम तदाभविष्यत् 3. 35. 154. किं दुःखं चिरजीविनाम् 3. App. 21. 174. किं देयं ब्रूहि मे गुरो 1. 1681*. 1 post. किं देवं प्रकरिष्यति 13. 6. 294. किं देवेन न वारितः 13. 6. 364. किं दैवेन निवारितः 18. 6. 374. किंद्रव्यास्ताः सभा ब्रह्मन् 2. 6. 15". किं द्रष्टव्यं तदास्माभिः 1. App. 84. 28 pr. किं द्रष्टव्यं मया तत्र 13. 19. 150... किं धर्मफलमामुमः 12.7.44. किं धर्ममधिकृत्याथ 14. App. 4. 6 pr. किं धर्मराजो हि यथापुरं मां 4. App. 59.7. किं धीर इव भाषसे 12. 169.74. किं धेन्वा चाप्यदुग्धया 12. 79. 40'. किं न कुर्याद्विभुः प्रभो 9. App. 5. 18 post. किं न कुर्यान्महायशाः 2. 18. 154. किं न कुर्या महाहवे 6. 103. 284. 7. 86.54. किं न कुर्युः पुरा मह्यं 1. App. 84. 18 pr. किं न गच्छन्ति शरणं 13. App. 5. 41 pr. किं न गृह्णासि विषयान् 3. 178. 17. किं न जानासि केशव 2. 535*.2 post. ; 542*.2 post., 543*. 3 post. किं न दत्तं पुरा विषम् 1. App. 84. 18 post. किं न दत्ता तदैव हि 9. 30. 554 किं नदध्वमधर्मज्ञाः 7. 50. 56deg. किं न पश्यसि मां पाप 9. 32. 476. किं न पश्यसि मे देव 3.81. 104". किं न पश्यसि मे ब्रह्मन् 9. 37. 39". किं न प्राप्तं भवेत्तेन 13. App. 8.72 pr. किं न ब्रूत कुमारा वः 1. 813*. 2 pr. किंनरद्रुमपत्रांश्च 2.282*.3 pr. किंनराचरितं गिरिम् 3. 143.50. किंनराचरितं शुभम् 3. 146. 176. किंनराणां समूहैश्च 12. 314. 4. किंनरा नाम गन्धर्वाः 2. 10. 14. किंनराप्सरसां तथा 3. 971*. 1 post. किंनराश्च महोरगाः 5. App. 8. 3 post. किंनराश्च समुद्विग्नाः 9. 45.77deg. किंनराः कृतनिश्रमाः 2. 4. 32. किंनराः शतशस्तत्र 2. App. 3.8 pr. किंनराः समहोरगाः 3. 82. 4%; 83. 234. 4. 1128*. 6 post. किंनरीभिस्तथैव च 3. 155. 35. किंनरीमिव भारत 3. 137. 24. किंनरीवाप्सरोपमा 1. 934*. 1 post. किंनरैरप्सरोमिश्च 1. 16. 2. 3. 107. 10. किंनरैरुपशोमितः 2. App. 29.71 post. 14.90. 36deg किंनरैर्देवगन्धः 13. 127.6%; App. 15. 199 pr. किंनरैर्मृगपक्षिमिः 3. 155. 86. किंनरैश्चोपशोभितम् 7. 57. 29. किंनरोद्गीतनादितान् 7. 57. 26deg. किंनरोद्गीतभाषिणि 1. 161. 10. किंनरोरगरक्षसाम् 3. 213. 23deg. किंनरोरगरक्षांसि 13. 99. 296. किंनरोरगराक्षसान् 13. App. 15. 4054 post, किंनरोरगराक्षसाः 5. 15. 1703; 67*. 1 post. 13. 82.8. किं न वक्ष्यसि माधवि 1. App. 114.259 post. किं न विज्ञातमेतन्मे 9.60. 28deg. किं न वै क्षत्रियहरः 5. 179. 250. किं नः कर्मे ते वारयन् 12. 806*. 11 post. किं नः क्रुद्धा करिष्यति 1. 143. 34. किं नः क्लेशेन भारत 2. 64. 11'. किं नः श्रेयो विधास्यथ 13. App. 9A. 100 post. किं नः संप्रेक्षमाणानां 9. 17. 19". किं नानमिव जीर्यते 12. 318. 24". किं नाब्रवीः पौरुषमाविदान: 3. 35. 16. किं नाम कृस्वाहमचक्षुरेवम् 3. 119. 11. किं नाम तद्भवेत्कर्म 10.9. 40deg. किं नाम दानं नियमं तपो वा 12. App. 28. 49. किं नाम दुःखं लोकेऽस्मिन् 10. 4. 23". किनामधेयगोत्रो वः 1.78. 14. 2-739

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