Book Title: Pat Darshan
Author(s): Kalpana K Sheth, Nalini Balbir
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 5
________________ प्रकाशकीय जैन तीर्थों में सिद्धाचल अर्थात् शत्रुजय का एक उत्तम स्थान है। बहुत पुराना भी है। सैकड़ों शताब्दियों से शत्रुजय के ऊपर विविध ग्रन्थ लिखे हुए हैं और 15वीं शताब्दी से शत्रुजय पट की परम्परा भी विकसित हो गई है। सिद्धाचल का नाम इस कारण के लिये दिया गया है कि इस स्थान में असंख्येय लोगों ने मोक्ष (सिद्धि) प्राप्त किया है। सिद्धाचल के पर्वत की हर जगह पवित्र है और इसके बारे में मनोरंजन तथा उपदेशात्मक कथाएं कही गई हैं। इस पुस्तक का विषय है एक सिद्धाचलपट जो जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं के पुस्तकालय में रखा हुआ है। उसका नम्बर है "Aa97" | यह कागज का है। उसकी लम्बाई 12 मीटर और चौड़ाई 24 सेण्टीमीटर है। इसमें सिद्धाचल के माहात्म्य का वर्णन दिया गया है। लिपि देवनागरी है और भाषा गुजराती। पट के 24 विभाग हैं, प्रत्येक तीर्थंकर के लिए एक विभाग। पट का महत्त्व यह भी है कि इस में 24 तीर्थंकरों के अलग-अलग चित्र मिलते हैं। ये चित्र कितने सुन्दर हैं और कितने प्रेरक हैं यह यहाँ प्रकाशित किये गये फोटो के आधार पर पाठकों को अपने आप देखने का मौका मिलेगा। यह पट दूसरे शत्रुजय-पटों के जैसा नहीं है। इस मे शत्रुजय के क्षेत्र, कुण्ड, तालाब इत्यादि के चित्र बिलकुल नहीं मिलते हैं। प्रशस्ति से पता चलता है कि यह पट विक्रम संवत् 1859 में बन गया था। इस पुस्तक के पहले भाग में हमने मूलपाठ को देवनागरी और रोमनाइजेशन में दिया है। बीच में हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है। दूसरे भाग के अन्तर्गत कथाओं का विवरण, शत्रुजय के जीर्णोद्धार और इस तीर्थ के विविध नामों के विषय पर हमने हिन्दी में कुछ जानकारी भी दी है और तीसरे भाग में ऐसा विवरण अंग्रेजी भाषा में दिया गया है। हम दोनों जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. समणी मंगलप्रज्ञाजी के प्रति कृतज्ञ हैं जिनकी प्रेरणा से यह अध्ययन प्रकाश में आ सका है। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय ने हमको सुविधायें उपलब्ध कराईं। इस के लिये भी हम आभारी हैं। जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के टेक्नीकल टीम ने भी प्रकाशन के काम में हमको पूरा सहयोग दिया है। उन सब लोगों को भी हम हार्दिक धन्यवाद देते हैं। डॉ. कल्पना क. शेठ प्रो. नलिनी बलवीर (iv)

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 ... 154