Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain View full book textPage 9
________________ ( ६ ) " " इस पुस्तक अन्त में शुभाशुभ कर्मों का फल दिखलानेवाला ' श्रीमहावीर - गौतम - प्रवचन ' दर्ज किया गया है। इसके २९१ दोहा हैं, जो - ' नियगुणदोसेहिंतो, संपयविवयाउ हुति पुरिसाणं " " सुरो वि कुकुरो होइ, रंको राया वि जायए । दिओ वि होइ मायंगो, संसारे कम्मदोसओ || " ' जे करशे ते भरशे ' ' जे खणशे ते पडशे ' जेवुं वावे तेवु लणे' और ' अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्' इत्यादि सूक्तियों के समर्थक, हरएक श्रावक श्राविका को कंठस्थ करने लायक और पापकर्म में प्रवृत्त आत्मा को दुर्गति से बचाने वाले हैं । दरअसल में ऐसे साहित्य के मनन करने से भक्ष्याsभक्ष्य, पेयाsपेय, आचरणीय और अनाचरणीय आदि आरंभ, या अनारंभ जनक कार्यों का ज्ञान होता है और आत्मा उनके इष्टानिष्ट फलों को समझ कर दुर्गति से बचने का प्रयत्न करता है । इसीसे महर्षियोंने भव्यजीवों के हितार्थ इस प्रकार के कर्म - साहित्य की रचना की है । इत्यलं विस्तरेण, ॐ शान्तिः ! ! ! मु० सिद्धक्षेत्र - पालीताणा विक्रमाब्द १९९९, श्रावण शुक्ला ५ बुधवार, व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्यायमुनिश्रीयतीन्द्रविजय ।Page Navigation
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