Book Title: Panchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Author(s): Rajendrasuri, Yatindravijay
Publisher: Ratanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain

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Page 8
________________ होने के कारण कतिपय स्थानों के क्रमाङ्क आगे पीछे हुए मालूम पडते हैं । परंतु यंत्रों में कर्ता की विवक्षा के अनुकूल ऐसा व्यत्यय हो जाना अनुचित नहीं, उचित ही है। सारांश के चतुर्थोल्लास में पृष्ट ३६, पंक्ति ५ में ( स्थान ९९ थी १४४) इसके स्थान पर ( स्थान ९९ थी १४५) और पृष्ठ ५२, पंक्ति १७ में 'पचास' की जगह पर 'सेंतालीस' ऐसा सुधार के वांचना सीखना चाहिये । प्रस्तुत चतुष्पदी में १९ वां स्थान 'चोपाई' की राह में, २०-२१-५७-९९-११३ वां स्थान 'वरस दिवसमां आषाढ चोमास, तेहमां वली भाद्रवो मास, आठ दिवस अतिखास । ' इस पर्युषण-स्तुति की राह में, २२-२३-२४ वां स्थान दिन ' एकादशी दीपतो ए, काटे भवनी कोड तो' इस एकादशी-स्तुति की राह में, २६-२७-१५८-१५९-१६०-१७२ वां स्थान ढालों की देशियों में, ३८-३९-४५-४६-४७-४८-८१-८२-१०८ १०९-११०-१११-१३०-१३१ वां स्थान 'मणि रचित सिंहासन, बेठा जगदाधार । पर्युषण केरो, महिमा अगम अपार' इस स्तुति की रह में, ८० वां 'सोरठा' की राह में, ४४-१०२-११२-१२५-१५३-१५४-१५५-१५६-१५७ वां स्थान ' हरिगीत' छन्द में, ३६-३७-८४-११४ वां स्थान 'वीसस्थानक तप विश्वमा मोटो, श्रीजिनवर कहे आपजी' इस वीशस्थानक-स्तुति की राह में और शेष सभी स्थान 'दोहा' छन्द में समझना चाहिये ।

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