Book Title: Padmapuran Part 2 Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 2
________________ पद्मपुराण जैन परम्परा में मर्यादापुरुषोत्तम राम की मान्यता त्रेषठ शलाकापुरुषों में है। उनका एक नाम पद्म भी था। जैन-पुराणों एवं चरितकाव्यों में यही नाम अधिक प्रचलित रहा है। जैन काव्यकारों ने राम का चरित्र पउमचरियं, पउमचरिउ, पद्मपुराण, पद्मचरित आदि अनेक नामों से प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं में प्रस्तुत किया है। आचार्य रविषेण (सातवीं शती) का प्रस्तुत ग्रन्थ पद्मपुराण संस्कृत के सर्वोत्कृष्ट चरितप्रधान महाकाव्यों में परिगणित है। पुराण होकर भी काव्यकला, मनोविश्लेषण, चरित्रचित्रण आदि में यह काव्य इतना अद्भुत है कि इसकी तुलना किसी अन्य पुराणकाव्य से नहीं की जा सकती है। काव्य-लालित्य इसमें इतना है कि कवि की अन्तर्वाणी के रूप में मानस-हिमकन्दरा से निःसृत यह काव्यधारा मानो साक्षात् मन्दाकिनी ही बन गयी है। विषयवस्तु की दृष्टि से कवि ने मुख्य कथानक के साथ-साथ प्रसंगवश विद्याधरलोक, अंजना-पवनंजय, हनुमान, सुकोशल आदि का जो चित्रण किया है, उससे ग्रन्थ की रोचकता इतनी बढ़ गयी कि इसे एक बार पढ़ना आरम्भ कर बीच में छोड़ने की इच्छा ही नहीं होती। पुराणपारगामी डॉ. (पं.) पन्नालाल जैन साहित्याचार्य द्वारा प्रस्तावना, परिशिष्ट आदि के साथ सम्पादित और हिन्दी में अनूदित होकर यह ग्रन्थ भारतीय ज्ञानपीठ से तीन भागों में प्रकाशित है। विद्वानों, शोधार्थियों और स्वाध्याय-प्रेमियों की अपेक्षा और आवश्यकता को देखते हुए प्रस्तुत है ग्रन्थ का यह एक और नया संस्करण। TAB ha ucation into For Private Recon www.ajalmemorary.org,Page Navigation
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