Book Title: Nyayakumudchandra Part 2
Author(s): Mahendramuni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 10
________________ न्यायकुमुदचन्द्र किया कि वे प्रभाचन्द्र कुमारसेन गुरुके शिष्य थे जब कि न्यायकुमुदचन्दकर्ताके गुरु पद्मनन्दि थे। अत एव . दोनों जुदा जुदा समयके जुदा जुदा विद्वान् हैं / इस उलझनके सुलझ जानेपर प्रभाचन्द्रके समय-निर्णयका मार्ग सुगम हो गया और अब तो . पं० महेन्द्रकुमारले उनके ग्रन्थों के अन्तरंग प्रमाण तथा बहि प्रमाणसे बिल्कुल निश्चित ही कर दिया है। प्रमेक्कमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदके अतिरिक्त उनके और कौन कौन ग्रन्थ हैं, इसका पता लगानेकी और यह सप्रमाण सिद्ध करनेकी कि वे उन्हींके हैं, दूसरे प्रभाचन्द्र नामधारियोंके नहीं हैं, अभी और जरूरत है। मेरी समझमें भाचन्द्रने टीका-टिप्पण ग्रन्थ बहुत लिखे हैं और अभी तक जिन्हें दूसरे प्रभाचन्द्रोंका समझा जाता से नीचे लिखे टीका-ग्रन्थ तो उनके ही हैं यह प्रायः निश्चय पूर्वक कहा जा सकता है। भूमिकामें इनमेसे कुछकी चर्चा भी की जा चुकी है 1 तत्वार्थत्तिपद विवरण ( सर्वार्थसिद्धि-टिप्पण)। 2 प्रवचनसरोजभास्कर / 6 समाधितन्त्र-टीका / / 3 शब्दाम्भोजभास्कर। 7 अात्मानुशासन-तिलक / 4 रनकरण्ड-टीका। 8 महापुराण (पुष्पदन्त)-टिप्पण / 5 क्रियाकलाप-टीका। 9 द्रव्यसंग्रह-पंजिका। ... पिछले ग्रन्थकी सूचना अभी हाल ही मुझे रायल एशियाटिक सोसाइटो बाम्बे ब्रांचके हस्तलिखित ' ' पन्धों के कैटलॉगमें मिली / उक्त ग्रन्थकी प्रति सं० 1822 की लिखी हुई है। उसका मङ्गलाचरण यह है "नत्वा जिनार्कमपहस्तितसर्वदोषं लोकत्रयाधिपतिसंस्तुतपादपद्मम् / ज्ञानप्रभाप्रकटिताखिलवस्तुसार्थ षड्व्व्य निर्णयमहं प्रकटं प्रवक्ष्ये // " मङ्गलाचरणकी यह शैली प्रभाचन्द्रकी ही है और उनके अन्य मङ्गलाचरणों के साथ इसका शब्दसाम्य भो है। आराधनाकथाकोश (गय) भी इन्हींका बनाया हुआ है। अन्य ग्रन्थसूचियोंमें प्रभाचन्द्रके नामसे नीचे लिखे टीका ग्रन्थोंके नाम और भी मिलते हैं। मेरा अनमान है कि इनमेंसे अधिकांश इन्हीं प्रभाचन्दके होंगे१ अष्टपाहुड-पक्षिका 5 पञ्चास्तिकायटीका / 2 स्वयंभूस्तोत्र-पञ्जिका 6 मूलाचारटीका 3 देवागम-पञ्जिका 7 आराधना-टीका 4 समयसार टीका 8 पद्मनन्दिपञ्चविंशतिकाटीका इन टीका-ग्रन्थोंकी छानबीन होने पर समयादिके सम्बन्धमें और भी पुष्ट प्रमाण उपलब्ध हो सकेंगे। मैं गवर्नमेण्ट संस्कृत कालेज़के प्रिंसिपल डॉ० मङ्गलदेवजी शास्त्री और हिन्दू विश्वविद्यालयके जैनदर्शनाध्यापक सखलालजीका आभार मानता हूँ जिन्होंने श्रादिवचन और प्राकथनके रूपमें बहमल्य विचार उपस्थित किए हैं। बम्बई -नाथूराम प्रेमी 27-3-41 मन्त्री ग्रन्थमाला।

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