Book Title: Niyam Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 8
________________ कुदकुद-भारता भूपव्वदमादीया, भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा। थूला इदि विण्णेया, सप्पीजलतेलमादीया।।२२।। छायातवमादीया, थूलेदरखंधमिदि वियाणाहि। सुहुमथूलेदि भणिया, खंधा चउरक्खविसया य।।२३।। सहमा हवंति खंधा, पावोग्गा कम्मवग्गणस्स पुणो। तविवरीया खंधा, अइसुहुमा इदि परूवेंदि।।२४।। अतिस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म ऐसे पृथिवी आदि स्कंधके छह भेद हैं।।२१।। भूमि पर्वत आदि अतिस्थूल स्कंध कहे गये हैं तथा घी, जल, तेल आदि स्थूल स्कंध हैं ऐसा जानना चाहिए।।२२।। छाया आतप आदि स्थूलसूक्ष्म स्कंध हैं ऐसा जानो। तथा चार इंद्रियोंके विषय सूक्ष्मस्थूल स्कंध हैं ऐसा कहा गया है।।२३।। कर्मवर्गणारूप होनेके योग्य स्कंध सूक्ष्म हैं और इनसे विपरीत अर्थात् कर्मवर्गणारूप न होनेके योग्य स्कंध अतिसूक्ष्म हैं ऐसा आचार्य निरूपण करते हैं।।२४।। __ भावार्थ -- जो पृथक् करनेपर पृथक् हो जावें और मिलानेपर मिल न सकें ऐसे पुद्गल स्कंधोंको अतिस्थूलस्थूल कहते हैं, जैसे पृथिवी, पर्वत आदि । जो पृथक् करनेपर पृथक् हो जावें और मिलानेपर पुनः मिल जावें ऐसे पुद्गल स्कंधोंको स्थूल कहते हैं, जैसे घी, जल, तेल आदि तरल पदार्थ। जो नेत्रोंसे दिखायी तो देते हैं पर ग्रहण नहीं किये जा सकते ऐसे स्कंधोंको स्थूलसूक्ष्म कहते हैं, जैसे छाया, आतप आदि। जो नेत्रोंसे देखनेमें तो नहीं आते परंतु अपनी-अपनी इंद्रियों द्वारा ग्रहण किये जाते हैं ऐसे स्कंधोंको सूक्ष्मस्थूल कहते हैं, जैसे कर्ण, घ्राण, रसना और स्पर्शन इंद्रियके विषयभूत शब्द, गंध, रस और स्पर्श। जो कर्मवर्गणारूप परिणमन करनेके योग्य हैं ऐसे स्कंध सूक्ष्म कहलाते हैं, ये इंद्रियज्ञानके द्वारा नहीं जाने जाते मात्र कार्यद्वारा इनका अनुमान होता है। तथा जो इतने सूक्ष्म हैं कि कर्मवर्गणारूप परिणमन नहीं कर सकते उन्हें अतिसूक्ष्म स्कंध कहते हैं, ये अवधिज्ञानादि द्वारा प्रत्यक्ष ज्ञानके द्वारा जाने जाते हैं।।२१-२४ ।। कारण परमाणु और कार्य परमाणु का लक्षण धाउचउक्कस्स पुणो, जं हेऊ कारणंति तं णेयो। खंधाणां अवसाणो, णादव्वो कज्जपरमाणू।।२५।। ____ जो पृथ्वी, जल, तेज और वायु इन चार धातुओंका कारण है उसे कारण परमाणु जानना चाहिए और स्कंधोंके अवसानको अर्थात् स्कंधोंमें भेद होते-होते जो अंतिम अंश रहता है उसे कार्यपरमाणु जानना

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