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नियमसार
इस प्रकार श्री कुंदकुंद आचार्य विरचित नियमसार ग्रंथमें व्यवहारचारित्राधिकार नामका चौथा अधिकार समाप्त हुआ । । ४ । ।
परमार्थप्रतिक्रमणाधिकार
णाहं णारयभावो, तिरियत्थो मणुवदेवपज्जाओ । कत्ता हि काइदा, अणुमंता णेव कत्तीणं । ।७७।।
हं मग्गठाणो णाहं गुणठाण जीवठाणो ण । कत्ता ण हि कारइदा, अणुमंता णेव कत्तीणं । ।७८ ।।
हं बालो वुड्डो, ण चेव तरुणो ण कारणं तेसिं । कत्ता हि काइदा, अणुमंता णेव कत्तीणं । । ७९ ।। णाहं रागो दोसो, ण चेव मोहो ण कारणं तेसिं । कत्ता ण हि कारइदा, अणुमंता णेव कत्तीणं । । ८० ।। णाहं कोहो माणो ण चेव माया ण होमि लोहोहं ।
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कत्ता ण हि कारइदा, अणुमंता णेव कत्तीणं । । ८१ । ।
मैं नारक पर्याय, तिर्यंच पर्याय, मनुष्य पर्याय अथवा देव पर्याय नहीं हूँ । निश्चयसे मैं उनका कर्ता हूँ, न करानेवाला हूँ और न करनवालोंकी अनुमोदना करनेवाला हूँ ।। ७७ ।।
मैं मार्गणास्थान नहीं हूँ, गुणस्थान नहीं हूँ और न जीवस्थान हूँ। निश्चयसे मैं उनका न करनेवाला हूँ, न करानेवाला हूँ और न करनेवालोंकी अनुमोदना करनेवाला हूँ ।। ७८ ।।
मैं बालक नहीं हूँ, वृद्ध नहीं हूँ, तरुण नहीं हूँ और न उनका कारण हूँ। निश्चयसे मैं उनका न करनेवाला हूँ, न करानेवाला हूँ और न करनेवालोंकी अनुमोदना करनेवाला हूँ ।। ७९ ।।
मैं नहीं हूँ, द्वेष नहीं हूँ, मोह नहीं हूँ और न उनका कारण हूँ। निश्चयसे मैं उनका न करनेवाला हूँ, न करानेवाला हूँ और करनंवालोंकी अनुमोदना करनेवाला नहीं हूँ ।। ८० ।।
मैं क्रोध नहीं हूँ, मान नहीं हूँ, माया नहीं हूँ और लोभ नहीं हूँ। मैं उनका करनेवाला नहीं हूँ, करानेवाला नहीं हूँ और करनेवालोंकी अनुमोदना करनेवाला नहीं हूँ । । ८१ । ।