Book Title: Niyam Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 31
________________ नियमसार २४५ जस्स सण्णिहिदो अप्पा, संजमे णियमे तवे। तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।१२७।। जिसका आत्मा संयम, नियम तथा तपमें सन्निहित रहता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है।।१२७ ।। जस्स रागो दु दोसो दु, विगडिं ण जणेदि दु। तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।१२८।। राग और द्वेष जिसके विकार उत्पन्न नहीं करते हैं उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है।।१२८ ।। जो दु अट्ट च रुदं च, झाणं वच्चेदि णिच्चसा। तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।१२९ ।। जो निरंतर आर्त और रौद्र ध्यानका परित्याग करता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है।।१२९।। जो दु पुण्णं च पावं च, भावं वच्चेदि णिच्चसा। तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।१३०।। जो निरंतर पुण्य और पापरूप भावको छोड़ता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है।।१३० ।। जो दु हस्सं रई सोगं, अरतिं वज्जेदि णिच्चसा । तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।१३१।। जो दुगंछा भयं वेदं, सव् वज्जदि णिच्चसा। तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।१३२।। जो निरंतर हास्य, रति, शोक और अरतिका परित्याग करता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवान्के शासनमें कहा गया है।।१३१ ।। जो निरंतर जुगुप्सा, भय और सब प्रकारके वेदोंको छोड़ता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली भगवानके शासनमें कहा गया है।।१३२।। जो दु धम्मं च सुक्कं, झाणं झाएदि णिच्चसा। तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।१३३।। जो निरंतर धर्म्य और शुक्ल ध्यानका ध्यान करता है उसके स्थायी सामायिक होता है ऐसा केवली

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