Book Title: Niyam Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 42
________________ कुदकुद-भारता __ और कितने ही लोग ईर्ष्याभावसे सुंदर मार्गकी निंदा करते हैं, इसलिए उनके वचन सुनकर जिनमार्गमें अभक्ति -- अश्रद्धा न करो।।१८६ / / णियभावणाणिमित्तं, मए कदं णियमसारणामसुदं। णच्चा जिणोवदेसं, पुव्वावरदोसणिम्मुक्कं / / 187 / / मैने पूर्वापर दोषसे रहित जिनोपदेशको जानकर निजभावनाके निमित्त यह नियमसार नामका शास्त्र रचा है।।१८७।। इस प्रकार श्री कुंदकुंदाचार्य विरचित नियमसारमें शुद्धोपयोगाधिकार नामका बारहवाँ अधिकार समाप्त हुआ।।१२।।

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