Book Title: Niyam Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 6
________________ २२० कुंदकुंद-भारती स्वपरापेक्ष और निरपेक्षके भेदसे पर्यायके दो भेद हैं ।। विभावपर्याय और स्वभावपर्यायका विवरण णरणारयतिरियसुरा, पज्जाया ते विभावमिदि भणिदा । कम्मोपाधिविवज्जिय, पज्जाया ते सहावमिदि भणिदा । । १५ । मनुष्य, नारक, तिर्यंच और देव ये विभावपर्यायें कही गयी हैं तथा कर्मरूप उपाधिसे रहित जो पर्यायें हैं वे स्वभावपर्यायें कही गयी हैं ।। १५ ।। मनुष्यादि पर्यायोंका विस्तार चाहिए। माणुस्सा दुवियप्पा, कम्ममहीभोगभूमिसंजादा । सत्तविहा णेरइया, णादव्वा पुढविभेण । । १६ ।। कर्मभूमिज और भोगभूमिजके भेदसे मनुष्य दो प्रकारके हैं तथा पृथिवियोंके भेदसे नारकी सात प्रकारके जानने चाहिए । । १६ ।। उदहभेदा भणिया, तेरिच्छा सुरगणा चउब्भेदा । एदेसिं वित्थारं, लोयविभागेसु णादव्वं । । १७ ।। तिर्यंचोंके चौदह और देवसमूहके चार भेद कहे गये हैं। इन सबका विस्तार लोकविभागमें जानना भावार्थ -- सूक्ष्म एकेंद्रय पर्याप्तक, अपर्याप्तक, बादरएकेंद्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक, द्वींद्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक, त्रींद्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक, चतुरिंद्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक, असंज्ञिपंचेंद्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक और संज्ञिपंचेंद्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तकके भेदसे तिर्यंचोंके चौदह भेद हैं। तथा भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिकके भेदसे देवसमूहके चार भेद हैं। इन सबका विस्तार लोकविभाग नामक परमागममें जानना चाहिए ।। १७ ।। आत्माके कर्तृत्व-भोक्तृत्वका वर्णन कर्ता भोत्ता आदा, पोग्गलकम्मस्स होदि ववहारा । कम्मजभावेणादा, कत्ता भोत्ता दु णिच्छयदो । । १८ ।। आत्मा पुद्गल कर्मका कर्ता भोक्ता व्यवहारसे है और आत्मा कर्मजनित भावका कर्ता भोक्ता निश्चयसे अर्थात् अशुद्ध निश्चयसे है। भावार्थ -- अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नयकी अपेक्षा आत्मा द्रव्यकर्मका कर्ता और उसके फलका भोक्ता है और अशुद्ध निश्चय नयकी अपेक्षा कर्मजनित मोह राग द्वेष आदि भावकर्मका कर्ता तथा भोक्ता है। अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नयसे शरीरादि नोकर्मका कर्ता है तथा उपचरित असद्भूत

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