Book Title: Nitivakyamrutam
Author(s): Somdevsuri, Ramchandra Malviya
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 14
________________ // श्रीः॥ नीतिवाक्यामतम् POOREOGH मङ्गलाचरणम् - सोमं सोमसमाकारं सोमाभं सोमसंभवम् / सोमदेवं मुनि नत्वा नीतिवाक्यामृतं ब्रुवे // 1 // कोतिमान् , कुबेर के समान आकृतिवाले, चन्द्रतुल्य कान्तिवाले तथा सोमवंश में अथवा सोम नामक व्यक्तिविशेष से समुत्पन्न सोमदेव मुनि को नमस्कार कर मैं अमृतमय नीतिवाक्यों को कहता हूँ। . विशेषार्थ-उमा शब्द कीति का वाचक है उससे संयुक्त जो हो वह सोम अतः सोम का अर्थ कोत्तिमान् है। .. ग्रन्थकर्ता से पूर्ववर्ती शुक्र और बृहस्पति ने अपने नीतिग्रन्थ के प्रारम्भ में राज्य की और आंगिरस मुनि की बन्दना की है अतः उसी परम्परा का अनुसरण करते हुए ग्रन्थकर्ता ने अपने इस नीतिग्रन्थ में प्रथमतः सोमदेव मुनि की वन्दना की है। श्लेष से इसमें ग्रन्थकर्ता के नाम सोमदेव का भी संकेत है। . नीतिवाक्यामृत के एक टीकाकार ने इस श्लोक से ब्रह्मा, विष्णु और शिव को वन्दना का अर्थ किया है जो संस्कृत टीका में शब्दों की विभिन्न व्युत्पत्ति के अनुसार संगत है। हिन्दी में वैसा अर्थ करना संगत न होगा। . 1. धर्मसमुद्देशः राज्यवन्दना- अथ धर्मार्थकामफलाय राज्याय नमः॥१॥ धर्म-अर्थ और काम की सिद्धि करनेवाले राज्य को नमस्कार है। विशेषार्थ-अथ शब्द मंगलात्मक और ग्रन्थारम्भ का सूचक है। शुक्राचार्य ने अपने नीतिशास्त्र के प्रारम्भ में इसी प्रकार राज्य को वन्दना की है। उन्होने राज्य को सुन्दर वृक्ष कहा है जिसकी-सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और समाश्रय रूप षड्गुण शाखाएं हैं, साम, दाम, दण्ड और भेद मनोहर पुष्प हैं और धर्म, अर्थ और काम फल हैं।

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