Book Title: Nitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Author(s): Devendramuni
Publisher: University Publication Delhi

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Page 459
________________ परिशिष्ट : प्राकृत जैन साहित्य की सूक्तियाँ / 431 अभय ... अबितिज्जओ मणूसो, भीतो भूतेहिं घिप्पइ, भीतो अन्नं पि भेसेज्जा। -प्रश्नव्याकरण, 2/2 भयभीत मनुष्य पर अनेकों भय आकर हमला कर देते हैं, क्योंकि डरपोक मनुष्य असहाय होता है। भय से आकुल मानव ही भूतों द्वारा घेर लिया जाता है। स्वयं भयग्रस्त व्यक्ति दूसरों को भी भयभीत कर देता है। न भाइयव्वं, भयस्स वा वाहिस्स वा, रोगस्स वा जराए वा मच्चुस्स वा। -प्रश्नव्याकरण, 2/2 आकस्मिक भय से, व्याधि से, रोग से, वृद्धावस्था से और यहाँ तक कि मृत्यु से भी भयभीत नहीं होना चाहिए। जेण कुणइ अवराहे, सो णिस्संकोदु जणवए भमदि। -समयसार, 302 जो किसी प्रकार का अपराध नहीं करता वह निःशंक होकर जनपद में घूमता है अर्थात् निरपराध व्यक्ति निर्भय होता है। दाणाणं चेव अभयदाणं -प्रश्नव्याकरण, 2/2 अभयदान सब दानों में श्रेष्ठ है। निब्भएण गतिव्वं -निशीथचूर्णिभाष्य तुम निर्भय होकर विचरण करो। अविनीत पुरिसम्मि दुब्विणीए दुब्विणीए, विणयविहाणं न किंचि आइक्खे। न वि दिज्जति आभरण, पसियत्तिकण्ण हत्थस्स।। __ -निशीथ भाष्य, 6221 दुर्विनीत को विनय विधान (सदाचार) की शिक्षा नहीं देनी चाहिए

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