Book Title: Nitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Author(s): Devendramuni
Publisher: University Publication Delhi

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Page 503
________________ तृष्णा दया दानदाता दुष्ट दोष परिशिष्ट : हिन्दी साहित्य की सूक्तियाँ / 475 काहू सों न दुष्ट वैन काहू सों न लैन दैन, ब्रह्म को विचार, कछु और न सुहात है । 'सुन्दर' कहत सोई ईशन को सोई गुरुदेव जाकै दूसरी न महाईश, बात है । - सुन्दर ग्रन्थ., पृ. 387 पल-पल छीजै देह यह घटत-घटत घट जाइ । 'सुन्दर' तृष्णा ना घटै दिन - दिन नौं तन खाइ । । - सुन्दर ग्रन्थ., पृ. 712 यदि मानव तन मध्य है, दयालुता का वास । तो होगा किस धर्म में, उसका नहीं विकास ।। - हरिऔध; दिव्य दो., 522 जो सबही को देत है, दाता कहिए सोई । जलधर बरसत सम-विषम थल न विचारति कोई । तरुनाई धन देह बल बहु दोषनु बिनु विवेक रत्नावली पशुसम करत - वृन्द सतसई, 100 'रहिमन' ओछे नरन सों बैरभलौ ना प्रीति 1 काटे चाटे स्वान के दुहूं रीति विपरीत ।। - रहीम. दोहा., पृ. 176 नीचन के व्यौहार विसाहा हंसि कै मांगत दम्मा | आलस नींद निगोड़ी घेरे 'घग्घा' तीनि निकम्मा । आगार | विचार ।। - घाघ, पृ. 37 - रत्नावली दो., 84

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