Book Title: Nitishastra Jain Dharm ke Sandharbh me
Author(s): Devendramuni
Publisher: University Publication Delhi

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Page 511
________________ परिशिष्ट : हिन्दी साहित्य की सूक्तियाँ / 483 विद्या विद्या बिनु सोहे नहीं, छवि जोबन कुल मूल । रहित सुगन्ध सजे न वन जैसे सेमल फूल ।। __-दृष्टान्त तरंगिणी, 120 विश्वास सिद्ध होत कारज सबै, जाके जिय विश्वास। -वृन्द सतसई, पृ. 527 जग परतीत बढ़ाइये, रहिए सांचे होय। झूठे नर की सांच हूं, साख न मानै कोय ।। ___-वृन्द सतसई, 580 वृद्धावस्था श्वेत बाल बतला रहे कितनी उज्जवल बुद्धि । रगड़ रगड़ हमने करी वर्षों इसकी शुद्धि ।। -नीति के दोहे व्यापार रोजगार बानिज्य को सुखप्रद अरु स्वच्छन्द। जामे निज लछिमी बसति देर करत मति मंद।। -सुधा सरोवर, पृ. 47 अलग-अलग व्यापार में, बहुव्यय स्रम लघु आय। या ते मिलिकर कम्पनी, कारज करहु बनाय।। -सुधा सरोवर, पृ. 48 श्रम चातरी एकाग्रता अरु सच्चा व्यवहार। समय ज्ञान और नम्रता मूल मन्त्र व्यापार ।। -नीति छन्द शरीर 'सुन्दर' देह मलीन अति, बुरी वस्तु को भौन। हाड़ मांस को कोथरा, भली वस्तु कहि कौन।। -सुन्दर ग्रन्थ, पृ. 720

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