Book Title: Narchandra Jain Jyotish
Author(s): Anand Indu Pustakalay
Publisher: Anand Indu Pustakalaya

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Page 197
________________ ( १८४ ) श्री नरयन ज्योतिष भाग २ . षविंशति घटीचापेःऽष्ट चतुः पल संयुताः। एकं पलं ततोहानी द्वादशाक्षर संयुतं ॥६॥ रात्रौ त्रिंशद्भक्तै षष्ठिघ्नं शेषमघ ततः कुर्यात् । त्रिंशद्भक्तं पुनरपि दिन भोगो दिनकरहिस ॥६॥ मकरादौ षट् त्रिंशत्याडशतिः षड दिकं शतंन्वयनाः । उत् क्रमतौ मेषादौ दिन वृद्धौ मकरा पदके च ॥६९॥ दिन हानौ काये षट् केप्येवविदुःपलानि बुधा । अभिमत दिवशस्य कृते भुक्तादिवसवसात् ॥७॥ दिमुनिंद्रियहि मरोचिषी १५७२ । ध्रुवकेमेकरादिके गणकः निक्षिप्य षष्टि भक्ते लब्धं ॥ दिनमानमभि विद्यात् ॥७॥ उदयास्त भोग युक्तै षष्टि हृते मध्य राशि पल मिलि। तेलब्धं दिन घटिकाः स्युं पलानि वर्णाश्च दिनमान।।७२॥ गणिते भुक्ति भोग्याहेः सर्वाहेर्विभजेत्ततलब्धे । भोरग्यं च भुक्तं च षष्टि नाच्छषतो वर्णाः . ॥७३॥ रेसशरगुणतार्द्ध दिनै पल । मिलिते मधिही न वसु गुणुया ॥ षट पंचासद्युतयां सप्तां गुल संकुच्छयया भक्तो ॥७४॥ लब्धं गतं शेष दिनं शेष षष्टाहतंत्तया भक्तं। पल वर्णांद्यं विद्या दिनमानमभिष्टकाष्ट कालस्य ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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