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जानवन्द्रिका टीका-व्यञ्जनाक्षरनिरूपणम्. ___ एवमेव एकाक्षरानेकाक्षभेदेन व्यञ्जनाक्षरं द्विविधम् । तत्रैकाक्षरं-धीः श्रीरित्यादि । अनेकाक्षरं-वीणा, लता, माला, इत्यादि । अथवा-संस्कृतप्राकृतभाषाभेदेन द्विविधम् । यथा-वृक्षः, रुक्खो-इति । तथा-नानादेशानाश्रित्य तद् व्यञ्जनाक्षरमनेकविधम् । यथा-मागधानाम्-ओदनः, 'चावल' इति भाषा प्रसिद्धः, लाटानां 'कूरः', द्राविडानां 'चौरः', आन्ध्राणाम्-'इडाकु'-रिति नाम प्रसिद्धम् । केवल एक अलोकाकाशरूप पर्याय ही है । इसी तरह स्थण्डिल शब्द का अभिधेय एक स्थण्डिलरूप पर्याय ही है।
"लोक" यह व्यंजनाक्षर अनेक पर्यायवाला है, क्योंकि इसके जगत, भुवन, संसार आदि अनेक अभिधेय-नाम होते हैं।
एकाक्षर, अनेकाक्षर, इस तरह से भी व्यंजनाक्षर दो प्रकार का बतलाया गया है। जिसमें केवल एक ही अक्षर होता है वह एकाक्षर व्यंजनाक्षर है-जैसे-धी, (बुद्धि) श्री आदि अक्षर । अनेक अक्षर जिसमें होते हैं वह अनेकाक्षर व्यंजनाक्षर है, जैसे-वीणा, लता, माला आदि शब्द ।
अथवा संस्कृत एवं प्राकृत आदि के भेद से भी यह व्यंजनाक्षर दो प्रकार का माना गया है-'वृक्ष' शब्द संस्कृत और 'रुक्ख' शब्द प्राकृत है। अथवा नाना देशों की अपेक्षा व्यंजनाक्षर अनेक प्रकार का भी बतलाया गया है-जैसे-मगधदेश में चावलों को 'ओदन' कहते हैं, लाटदेश में 'कूर' कहते हैं, द्राविडदेश में 'चौर' कहते हैं और आंध्रदेश में 'इडाकु' कहते हैं। કેવળ એક અલકાકાશ રૂપ પર્યાય જ છે. એજ રીતે સ્પંડિલ શબ્દનું અભિઘેય એક સ્પંડિલરૂપ પર્યાય જ છે.
"a" मा व्याक्ष२ मने पर्यायवाणे। छ. १२९१ तेना सत, ભુવન, સંસાર આદિ અનેક અભિધેય થાય છે.
- એકાક્ષર, અનેકાક્ષર, આ રીતે પણ વ્યંજનાક્ષર બે પ્રકારનું બતાવ્યું છે. જેમાં ફકત એક જ અક્ષર હોય છે તે એકાક્ષર વ્યંજનાક્ષર છે જેમકે—ધી, શ્રી આદિ અક્ષર. જેમાં અનેક અક્ષર હોય છે તે અનેકાક્ષર વ્યંજનાક્ષર છે; જેમકે वि, सता, माता, माहिश६.
અથવા સંસ્કૃત અને પ્રાકૃત આદિના ભેદથી પણ એ વ્યંજનોસર બે प्रहार भनाय छे. “वृक्ष" श६ संस्कृत मन “रुक्ख' शv४ प्राकृत छ, અથવા વિવિધ દેશોની અપેક્ષાએ વ્યંજનાક્ષર અનેક પ્રકારનું પણ બતાવ્યું છે
भाष देशमा यामान 'ओदन' ४ छ, दाटमा “कूर" हे छे. द्राविड देशमा “चौंर" ४ छ न्मने मां देशमा "इडाकु" डे छे.