Book Title: Nandisutram Author(s): Devvachak, Punyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad View full book textPage 6
________________ गंथसमप्पणं सवण्णुसत्थाथपयासणथं भवाण जीवाण विबोहणत्थं । गंथा अणेगा रइया महग्या जेहिं महत्था विविहा विसुद्धा ॥१॥ 'भवविरहसूरि' इतिगुण्णणाम जेसिं जयम्मि सुपसिद्धं । जाइणिमहत्तराए धम्मसुयत्तं च जे पत्ता ॥२॥ अणुवकयपरोवकया अम्हारिसऽणेयजणगणम्मि जे । महमाहणाण महसमणवराणं पुजपायाणं ॥३॥ सिरिहरिभदायरियाणऽणणुवमचरियाण महमईणं णं । ताणं ताणाणऽहयं तब्बिरइयवित्तिसंजुयं एयं ॥४॥ पुण्णपवित्ते करकयकोसे अप्पेमि नंदिसुत्तं हं । भत्ति-बहुमाणगहिलो विणयणओ अप्पयं धनं ॥५॥ मन्नमाणो वारं वारं सकयत्थयं च भावंतो। मुणिपुण्णविजयणामो णिग्गंथो चरणरयकप्पो ॥६॥छहिं कुलयं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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