Book Title: Nahta Bandhu Abhinandan Granth
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 8
________________ प्रतिष्ठ विद्वान डॉ० दशरथ शर्माने प्रधान सम्पादक बनने की अपनी स्वीकृति दे दी। जब विद्वानोंसे नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थके लिए लेख आदिके लिए प्रार्थना की गयी तो इतने महत्त्वपूर्ण लेख आये कि उन सबके प्रकाशित होनेपर नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ स्वयं अपने आपमें राजस्थानी जैन-साहित्य, संस्कृति और इतिहासका 'एनसाइक्लोपीडिया' बन जायेगा। इस कार्यको शीघ्र क्रियान्वित करनेके लिए उदयपुरके सुप्रसिद्ध लोक-गायक श्री चन्द्रगन्धर्वने अपना अमूल्य समय दिया और दिल्ली में विश्वधर्मप्रेरक मुनि सुनीलकुमारजीके सान्निध्यमें अभिनन्दन समारोहकी समितिका निर्माण भी किया। किन्तु दुर्भाग्यवश मेरी व्यक्तिगत उलझनोंके कारण यह नहीं हो सका, इसके लिए मैं स्वयं दोषी हैं। दिल्ली में जहाँ भी गया सबने तन, मन और धनसे इस पुनीत कार्य में सहयोग देनेका वचन दिया। इधर कुछ वर्षों में महँगाई अधिक हो जानेसे जितने बजट में इस ग्रन्थके प्रकाशन व समारोहकी व्यवस्था सोची थी, वह सारी स्कीम चौपट हो गयी। मैं इतनी बड़ी धनराशिके अभाव में निराश हो गया। दो वर्ष पूर्व जब मैं मद्रास गया तो मेरे परममित्र श्री केशरीचंदजी सेठियाने उत्साहित होकर कहा, "नाहटाजीका सम्मान सरस्वती देवीका सम्मान है । पैसेकी कोई कमी नहीं, आप १५-२० दिन रुकें, सारी अर्थव्यवस्था यहींसे संग्रहीत हो जावेगी।" मेरा मद्रासमें इतना ठहरना सम्भव नहीं था। फिर एक दिन में ही २-४ घंटोंके अन्दर ही अर्थसंग्रहके कार्यका श्रीगणेश किया गया। जहाँ भी गया, वहाँ इस योजनाकी प्रशंसा और आवश्यकता बतायी उनमें स्वनामधन्य स्व० सेठ पूनमचंद आर० शाह ( साउथ इण्डिया फ्लावर मिल, मद्रास ) जिनका कुछ महीनों पूर्व स्वर्गवास हो गया, ने कहा, "नाहटा-बन्धुओंके सम्मानमें एक लाख रुपये देओं तो भी कम है।" फिलहाल मद्रासकी सामाजिक मर्यादाके कारण सिर्फ ५०१) दे रहा हूँ और बाकी बादमें दूंगा। ऐसे ही उत्साहजनक वचन श्री मिलापचन्दजी ढढ्ढा मद्रासवालोंने व्यक्त किये थे। समय व्यतीत होता गया और आज यह हर्षका विषय है कि यह भव्य आयोजन श्री नाहटा-बन्धुओंकी जन्मस्थली बीकानेरमें ही बीकानेरके कतिपय उत्साही कार्यकर्ताओंकी सूझ-बूझ व श्री महावीर जैन-मंडलके तत्त्वावधानमें होना निश्चित हुआ है। श्री भंवरलालजी कोठारी बधाईके पात्र हैं जिन्होंने अभिनन्दन समारोहके गुरुतर कार्यको सहर्ष करना स्वीकार कर लिया। वे इस समारोहके सर्वसम्मत संयोजक चुने गये। अर्थाभावके कारण ग्रन्थका प्रथम खंड श्री नाहटाजीका जीवन-चरित्र और संस्मरण ही अब तक प्रकाशित हो सका है, वह भेंट किया जा रहा है। दूसरे खंडमें विद्वानोंके लेख संग्रहीत हैं, प्रकाशित किये जायेंगे । आशा है, वह अगले वर्ष प्रकाशित कर नाहटा-बन्धुओंको भेंट किया जायेगा। मैं उन विद्वान् बन्धुओंका आभारी हूँ जिन्होंने अमूल्य लेख-सामग्री भेजकर इस ग्रन्थकी शोभा बढ़ायी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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