Book Title: Munisuvrat Kavya
Author(s): Arhaddas, Bhujbal Shastri, Harnath Dvivedi
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 3
________________ पानी अवश्य थी तथा जैनाचार्यों तथा मुनियों ने अपनी असण्ड नपस्याओं और चामत्कारिक सिद्धियों से यहाँ की धूलि पुंज के अणु-परमाणुओं तक को भी पूत कर दिखाया था अवश्य । तभी तो आज भी उस दिव्य विभूति की झलक लोगों की आँखों को चकाचौंत्र किये देती है। अस्तु मुनिसुव्रत स्वामी गाईस्थ्य-जीवन समाप्त कर विजय नामक अपने पुत्रको राज्य भार दे स्वयं मोक्ष मार्ग के पक्के एथिक बने। आपका विवाद कहाँ, किसकी कन्या से हुआ था तथा आपको विजय के अतिरिक्त और सरी कोई संतान थी कि महीं आदि बातों का उल्लेख इस काव्य में कहीं नहीं है। आपके विवाह के विषय में केवल यही लिखा हुआ मिलता है कि "पित्रा विनिवर्तितदारकर्मा" अर्थात् पिता ने इनकी शादी इस काव्य के संकलयिता कवि-कुंजर परम सम्मानाई श्री अईहास जी है। इसकी कृतियों के द्वारा इनका समय-निर्णय करना मेरे जैसे वहु-कार्य-व्याप्त साधारण इतिहासह संस्कृत-पण्डित के लिये नितान्त असम्भव है। हां यदि कोई सावकाश इतिहासवेत्ता जैन विद्वान् इस अमर कवि की कविता की ओर कटाक्षपात करें तो अवश्य समय निर्णय तथा समालोचनात्मक भूमिका होसकती है। इतनी बात मैं अवश्य कहूंगा कि इनके समयनिर्णय करने में लोगों को आकाश-पाताल का कुलावा अब एक महीं करमा पड़ेगा। क्योंकि अभी तक इनके तीन काव्य उपलब्ध हुए हैं। यह "मुनिसुव्रत काव्य" "पुरुदेव चम्पू" तथा " भव्य-कपटाभरण"। इन तीनों की निम्नलिखित प्रशस्तियों से यह बात ज्ञात होती है कि आपने अपना काव्य-गुरु पण्डिताचार्य आशाधर जी को माना है ! और आशाधर जी की ही कविता तथा उपदेश से प्रभावित तथा निनिमीलितचा होकर यह अहहास कवि कविता-रचना में अग्रसर हुए हैं। "मिथ्यात्वकर्मपटलैश्विरमावृते में युग्भे दृशोः कुपथयाननिदानभुते । श्राशायरोक्तिप्लसदजनसम्प्रयोग : स्वच्छीकृते पृथुलसपथमाश्रितोऽस्मि (मु • काल) "सूक्त्यैव तेषां भवभीरवो ये गृहाश्रमस्थाश्चरितात्मधर्माः । त एव शेषामिया सहाया धन्याः स्युरा शायरसूषिर्या:" [ भव्यकएठाभरण । 'मित्थ्यात्वपककलुषे मम मान मेऽस्मिन् आशाधरोक्तिकतकप्रसरैः प्रसन्ने । उल्लासितेन शरदा पुरुदेवभक्च्या तञ्चम्पुदम्भ जलजेन समुज्जजम्भे ॥ पु० भ० ॥ पण्मुित आशाधा का समय इतिहास-वेत्ताओं ने विक्रम सम्बत् १३०० निशित कर क्या है। छातः इनका भी समय वही या इसके लाभग माममा समुचित होगा। .

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